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सीलन

4.1
11088

मेरे लिए वो एक ‘शॉक’ था। रात घिर आई थी। हर ओर अन्धेरा पसरा हुआ था। ठिठुरन के बावजूद मैं पसीने से तर ब तर था। रिया मेरा हाथ पकड़ कर लगभग खींचते हुए एक घर के अंदर ले गई। मैं अवाक था, दिमाग कुंद पड़ ...

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समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Siddharth Vallabh
    06 जुलाई 2016
    लघु कथा को नैतिक कथा की सीमा से बाहर होकर पढ़ना चाहिए। कहानी प्रत्येक कथ्य को रुपक में ढाल देने के अतिरेक से बच गयी है इसलिए बांधे रखती है। सहज और दिलचस्प अंदाज़ में शुरू हुई कहानी धीरे धीरे अपने गिरफ्त में ले लेती है।कहानी अपने निटिंग टेक्सचर और ट्रीटमेंट में सघन बन पड़ी है। दरअसल सीलन सोशियो- पोलिटिकल सर्वाइवल/सुपरमेसी में पीछे छूटते हुए इंसानियत की किस्सागोई है। इस सीलन से बाहर निकलने का कोई तंत्र नज़र नहीं आता। लेखक की बेचैनी साफ़ दिखती है कहानी के अंत में लेकिन सारांश कहने से बचती हैं। ये ख़ास बनाता है रचनाकार को। बहरहाल बेहतरीन एवं चुस्त कथा के लिए बहुत बधाई।
  • author
    20 अप्रैल 2018
    कहानी अच्छी है सच के करीब , मगर इसको कोई अंजाम तक पहुचना था .......?
  • author
    ruchitewari salori
    01 अप्रैल 2017
    दिल को छू ने वाली कहानी, पर कुछ अधूरी
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    Siddharth Vallabh
    06 जुलाई 2016
    लघु कथा को नैतिक कथा की सीमा से बाहर होकर पढ़ना चाहिए। कहानी प्रत्येक कथ्य को रुपक में ढाल देने के अतिरेक से बच गयी है इसलिए बांधे रखती है। सहज और दिलचस्प अंदाज़ में शुरू हुई कहानी धीरे धीरे अपने गिरफ्त में ले लेती है।कहानी अपने निटिंग टेक्सचर और ट्रीटमेंट में सघन बन पड़ी है। दरअसल सीलन सोशियो- पोलिटिकल सर्वाइवल/सुपरमेसी में पीछे छूटते हुए इंसानियत की किस्सागोई है। इस सीलन से बाहर निकलने का कोई तंत्र नज़र नहीं आता। लेखक की बेचैनी साफ़ दिखती है कहानी के अंत में लेकिन सारांश कहने से बचती हैं। ये ख़ास बनाता है रचनाकार को। बहरहाल बेहतरीन एवं चुस्त कथा के लिए बहुत बधाई।
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    20 अप्रैल 2018
    कहानी अच्छी है सच के करीब , मगर इसको कोई अंजाम तक पहुचना था .......?
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    ruchitewari salori
    01 अप्रैल 2017
    दिल को छू ने वाली कहानी, पर कुछ अधूरी