मेरे लिए वो एक ‘शॉक’ था। रात घिर आई थी। हर ओर अन्धेरा पसरा हुआ था। ठिठुरन के बावजूद मैं पसीने से तर ब तर था। रिया मेरा हाथ पकड़ कर लगभग खींचते हुए एक घर के अंदर ले गई। मैं अवाक था, दिमाग कुंद पड़ ...
लघु कथा को नैतिक कथा की सीमा से बाहर होकर पढ़ना चाहिए। कहानी प्रत्येक कथ्य को रुपक में ढाल देने के अतिरेक से बच गयी है इसलिए बांधे रखती है। सहज और दिलचस्प अंदाज़ में शुरू हुई कहानी धीरे धीरे अपने गिरफ्त में ले लेती है।कहानी अपने निटिंग टेक्सचर और ट्रीटमेंट में सघन बन पड़ी है। दरअसल सीलन सोशियो- पोलिटिकल सर्वाइवल/सुपरमेसी में पीछे छूटते हुए इंसानियत की किस्सागोई है। इस सीलन से बाहर निकलने का कोई तंत्र नज़र नहीं आता। लेखक की बेचैनी साफ़ दिखती है कहानी के अंत में लेकिन सारांश कहने से बचती हैं। ये ख़ास बनाता है रचनाकार को। बहरहाल बेहतरीन एवं चुस्त कथा के लिए बहुत बधाई।
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लघु कथा को नैतिक कथा की सीमा से बाहर होकर पढ़ना चाहिए। कहानी प्रत्येक कथ्य को रुपक में ढाल देने के अतिरेक से बच गयी है इसलिए बांधे रखती है। सहज और दिलचस्प अंदाज़ में शुरू हुई कहानी धीरे धीरे अपने गिरफ्त में ले लेती है।कहानी अपने निटिंग टेक्सचर और ट्रीटमेंट में सघन बन पड़ी है। दरअसल सीलन सोशियो- पोलिटिकल सर्वाइवल/सुपरमेसी में पीछे छूटते हुए इंसानियत की किस्सागोई है। इस सीलन से बाहर निकलने का कोई तंत्र नज़र नहीं आता। लेखक की बेचैनी साफ़ दिखती है कहानी के अंत में लेकिन सारांश कहने से बचती हैं। ये ख़ास बनाता है रचनाकार को। बहरहाल बेहतरीन एवं चुस्त कथा के लिए बहुत बधाई।
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