सतरंग चुनरियाँ ओढ़े, आसमान मुझे मोहे। देखो लाल पिला हरा नीला, साज गया आकाश नीला। सफेद चादर पर रंग सुनहरा मन पे छाप छोडे गहरा। हर रंग की बात निराली आकाश मे छाई है लाली जैसे आकाश मे खेली गई होली ...
*स्याही की भी मंजिल का अंदाज़ देखिये*
*खुद ब खुद बिखरती है तो दाग़ बन जाती है,*
*कोई और बिखेरता है तो*
*अल्फ़ाज़ बन जाती है.!!*बहुत ही शानदार, हृदयस्पर्शी, रचना बन जाती है.....
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