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गुलाबी पँख की परवाज़ तारी आसमाँ पे लो फिर आये परिंदे दूर मुल्कों की हदों के फासलों से रौनकें गुलज़ार हैं दरिया के दो बाजू परिंदे देखते हैं हवा,पानी,सब्ज़ हों बाजू बसाते आशियाँ अपना नहीं बँटते ...