pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

सरहदें

4.6
104

गुलाबी पँख की परवाज़ तारी आसमाँ पे लो फिर आये परिंदे दूर मुल्कों की हदों के फासलों से रौनकें गुलज़ार हैं दरिया के दो बाजू परिंदे देखते हैं हवा,पानी,सब्ज़ हों बाजू बसाते आशियाँ अपना नहीं बँटते ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में

संतोष श्रीवास्तव 1977 से निरंतर लेखन कहानी,उपन्यास,कविता,स्त्री विमर्श,संस्मरण,लघुकथा,साक्षात्कार,आत्मकथा की अब तक 27 किताबे प्रकाशित। देश विदेश के मिलाकर कुल 28 पुरस्कार मिल चुके है। राजस्थान विश्वविद्यालय से पीएचडी की मानद उपाधि। "मुझे जन्म दो माँ" स्त्री के विभिन्न पहलुओं पर आधारित पुस्तक रिफरेंस बुक के रुप में विभिन्न विश्वविद्यालयों में सम्मिलित। संतोष जी की 6 पुस्तकों पर देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से एम फिल हो चुका है । तथा अब तक सात पीएचडी हो चुकी है। कहानी लघुकथा एवं संस्मरण भारत के विभिन्न विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में कोर्स में लगे हैं। भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा विश्व भर के प्रकाशन संस्थानों को शोध एवं तकनीकी प्रयोग( इलेक्ट्रॉनिक्स )हेतु देश की उच्चस्तरीय पुस्तकों के अंतर्गत "मालवगढ़ की मालविका " उपन्यास का चयन विभिन्न रचनाओं के अनुवाद मराठी,ओडिया ,उर्दू ,पंजाबी,छत्तीसगढ़ी,तमिल,तेलुगू,मलयालम अँग्रेज़ी, गुजराती, बंगाली में हो चुके हैं। 31 देशों की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक यात्रा। मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति एवं हिंदी भवन न्यास द्वारा वर्ष 2024 से संतोष श्रीवास्तव कथा सम्मान की स्थापना। मोबाइल नंबर 9769023188 ईमेल kalamkar.santosh@,Gmail.com

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Balkar Singh Goraya
    29 मार्च 2019
    "हम बँट गए हैं टुकड़ों टुकड़ों में। खुदाया किस तरह हम मज़हबी हैं।" ? बहुत सच। हाँ, मज़हब ने ही सिखाया है, आपस में बैर रखना।
  • author
    Dr. Santosh Chahar "ज़ोया"
    03 मई 2019
    सराहनीय। बहुत सुंदर
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Balkar Singh Goraya
    29 मार्च 2019
    "हम बँट गए हैं टुकड़ों टुकड़ों में। खुदाया किस तरह हम मज़हबी हैं।" ? बहुत सच। हाँ, मज़हब ने ही सिखाया है, आपस में बैर रखना।
  • author
    Dr. Santosh Chahar "ज़ोया"
    03 मई 2019
    सराहनीय। बहुत सुंदर