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सरहदें

4.6
103

गुलाबी पँख की परवाज़ तारी आसमाँ पे लो फिर आये परिंदे दूर मुल्कों की हदों के फासलों से रौनकें गुलज़ार हैं दरिया के दो बाजू परिंदे देखते हैं हवा,पानी,सब्ज़ हों बाजू बसाते आशियाँ अपना नहीं बँटते ...

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समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Balkar Singh Goraya
    29 मार्च 2019
    "हम बँट गए हैं टुकड़ों टुकड़ों में। खुदाया किस तरह हम मज़हबी हैं।" ? बहुत सच। हाँ, मज़हब ने ही सिखाया है, आपस में बैर रखना।
  • author
    Dr. Santosh Chahar "ज़ोया"
    03 मे 2019
    सराहनीय। बहुत सुंदर
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    Balkar Singh Goraya
    29 मार्च 2019
    "हम बँट गए हैं टुकड़ों टुकड़ों में। खुदाया किस तरह हम मज़हबी हैं।" ? बहुत सच। हाँ, मज़हब ने ही सिखाया है, आपस में बैर रखना।
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    Dr. Santosh Chahar "ज़ोया"
    03 मे 2019
    सराहनीय। बहुत सुंदर