कभी आपने सुना है कि बेटी का सपना पूरा करने में मां बाप ने अपना घर और शहर छोड़ दिया हो और बेटी के साथ उसके सपनों के शहर शिफट हो गए हों? मेरे मम्मी-पापा ने यही किया। मेरा एफटीटीआई में एडमिशन हुआ तो ...
मानव जीवन एक बार मिलता है चाहे वो इस्त्री हो या पुरुष।येआप पर निर्भर करता है कि आप उसका क्या मूल्य लगते हैं। लेखिका ने जीवन जीने का स्त्रियों को जो एक नजरिया दिया है निश्चय ही अब वे दिल में संतोष रख कर मृत्यु का स्वागत कर सकेंगी।
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बहुत ही बढ़िया प्रगतिवादी रचना,एक ऐसी अनछुए कथानक को लेखिका ने उकेरा है कि इस व्यथा को भुक्तभोगी ही समझ सकता है, विशेष कर स्त्रियों के लिए हर उम्र के पड़ाव पर वर्जनाऐ है। इस मुद्दे पर कलम उठाने के लिए लेखिका बधाई की पात्र है।
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