मानव सभ्यता के इतिहास में आज जितनी भी उपलब्धियां सभी समाज के लेखन का गौरव बढ़ा रही हैं ;इनमें यह निर्विवाद सत्य है किइस सम्पूर्ण परिदृश्य में जितनी भूमिका पुरुषों की रही है उतनी ही महिलाओं की भी है ...
शिक्षा – एम्.ए. ( हिन्दी )
सम्प्रति – कंटेंट एडिटर, प्रतिलिपि कॉमिक्स
प्रकाशित पुस्तकें – तिराहा,बेगम हज़रत महल (उपन्यास )
अनतर्मन के द्वीप, पॉर्न स्टार और अन्य कहानियां – कहानी संग्रह
कई कवितायें ,कहानियाँ एवं लेख पत्र - पत्रिकाओं और कई ब्लॉग्स पर प्रकाशित।
सारांश
शिक्षा – एम्.ए. ( हिन्दी )
सम्प्रति – कंटेंट एडिटर, प्रतिलिपि कॉमिक्स
प्रकाशित पुस्तकें – तिराहा,बेगम हज़रत महल (उपन्यास )
अनतर्मन के द्वीप, पॉर्न स्टार और अन्य कहानियां – कहानी संग्रह
कई कवितायें ,कहानियाँ एवं लेख पत्र - पत्रिकाओं और कई ब्लॉग्स पर प्रकाशित।
मैम आपकी लेखनी कला बहुत अच्छी है, आपने जिस प्रकार से शब्दों का चयन किया है यह आपकी अपनी विशेष शैली है।
परन्तु फिर भी यह लेख संताल आदिवासी महिलाओ और समाज की स्थिति को न्यायपूर्ण तरीके से नही रख पा रही हैं। यह तो सही है कि आदिवासी समुदाय सरल तथा निश्छल रूप से प्रकृति के करीब रहा है। अपने आडंबर रहित जीवनशैली में ही वे अपना जीवन यापन करते हैं। परन्तु महिलाओं की स्थिति के लिये वर्णित कुछ अंश वास्तिविकता मे न्यायपूर्ण नही है। संताल समाज मे महिलाओ को भी समानता का वही अधिकार प्राप्त है जैसा किसी अन्य आदिवासी समाज मे है एवं प्रारम्भिक काल से ही यह सम्माज मातृसत्तात्मक रहा है। यहाँ पर्दा प्रथा, सती प्रथा, कन्या शिशु हत्या, दहेज जैसी कुप्रथाएँ नही रहीं हैं। लैंगिक अनुपात में भी संथाल एवं आदिवासी समाज की स्थिति बेहतर रही है।
कालांतर में कुछ सीमित क्षेत्रो में रही अंध्विश्वास जैसी कुप्रथाओं का युवा पीढ़ी शिक्षा के माध्यम से समापन कर रही हैं।
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संथालों में सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि ये बहुत ही अंधविश्वासी होते हैं। किसी भी रोग के उपचार में झाड़ फुंक व ओझा गुणियों का सहारा लेते हैं। हालांकि ये बहुत सीधे सादे और शर्मिले स्वभाव के होते हैं।
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संथाल पर लिखी आपकी रचना उत्तम है।पर कुछ जगहों पर तर्कसंगत नहीं लगता।जीवन के 20 साल मैंने गुजारे है उनके साथ।काफी करीब से देखा है।मुझे लगता है औरतों की स्थिति बाकी समाज से बेहतर है।
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मैम आपकी लेखनी कला बहुत अच्छी है, आपने जिस प्रकार से शब्दों का चयन किया है यह आपकी अपनी विशेष शैली है।
परन्तु फिर भी यह लेख संताल आदिवासी महिलाओ और समाज की स्थिति को न्यायपूर्ण तरीके से नही रख पा रही हैं। यह तो सही है कि आदिवासी समुदाय सरल तथा निश्छल रूप से प्रकृति के करीब रहा है। अपने आडंबर रहित जीवनशैली में ही वे अपना जीवन यापन करते हैं। परन्तु महिलाओं की स्थिति के लिये वर्णित कुछ अंश वास्तिविकता मे न्यायपूर्ण नही है। संताल समाज मे महिलाओ को भी समानता का वही अधिकार प्राप्त है जैसा किसी अन्य आदिवासी समाज मे है एवं प्रारम्भिक काल से ही यह सम्माज मातृसत्तात्मक रहा है। यहाँ पर्दा प्रथा, सती प्रथा, कन्या शिशु हत्या, दहेज जैसी कुप्रथाएँ नही रहीं हैं। लैंगिक अनुपात में भी संथाल एवं आदिवासी समाज की स्थिति बेहतर रही है।
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संथालों में सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि ये बहुत ही अंधविश्वासी होते हैं। किसी भी रोग के उपचार में झाड़ फुंक व ओझा गुणियों का सहारा लेते हैं। हालांकि ये बहुत सीधे सादे और शर्मिले स्वभाव के होते हैं।
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