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संथाल आदिवासी समाज में महिलाओं का स्थान

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मानव सभ्यता के इतिहास में आज जितनी भी उपलब्धियां सभी समाज के लेखन का गौरव बढ़ा रही हैं ;इनमें यह निर्विवाद सत्य है किइस सम्पूर्ण परिदृश्य में जितनी भूमिका पुरुषों की रही है उतनी ही महिलाओं की भी है .पाचीन काल में नारी देवी रूप में पूज्या थी तो मध्य काल में वह उपेक्षा का शिकार हुई ..लेकिन ,यह सत्य है कि किसी भी देश के सामजिक निर्माण और उत्थान में नारी के योगदान को नकारा नहीं जा सकता .जहाँ तक संथाल आदिवासी समाज की बात है तो कुछ पारिवारिक और धार्मिक अनुष्ठानों को छोड़कर सामान्यत: महिलाओं को पुरुषों ...

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लेखक के बारे में

शिक्षा – एम्.ए. ( हिन्दी ) सम्प्रति – चीफ एडिटर,प्रतिलिपि प्रकाशित पुस्तकें – तिराहा,बेगम हज़रत महल (उपन्यास ) अनतर्मन के द्वीप, प्यार का एनिमेशन,पॉर्न स्टार और अन्य कहानियां – कहानी संग्रह कई कवितायें ,कहानियाँ एवं लेख पत्र - पत्रिकाओं और कई ब्लॉग्स पर प्रकाशित।

समीक्षा
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  • author
    Ranjan
    13 मई 2019
    मैम आपकी लेखनी कला बहुत अच्छी है, आपने जिस प्रकार से शब्दों का चयन किया है यह आपकी अपनी विशेष शैली है। परन्तु फिर भी यह लेख संताल आदिवासी महिलाओ और समाज की स्थिति को न्यायपूर्ण तरीके से नही रख पा रही हैं। यह तो सही है कि आदिवासी समुदाय सरल तथा निश्छल रूप से प्रकृति के करीब रहा है। अपने आडंबर रहित जीवनशैली में ही वे अपना जीवन यापन करते हैं। परन्तु महिलाओं की स्थिति के लिये वर्णित कुछ अंश वास्तिविकता मे न्यायपूर्ण नही है। संताल समाज मे महिलाओ को भी समानता का वही अधिकार प्राप्त है जैसा किसी अन्य आदिवासी समाज मे है एवं प्रारम्भिक काल से ही यह सम्माज मातृसत्तात्मक रहा है। यहाँ पर्दा प्रथा, सती प्रथा, कन्या शिशु हत्या, दहेज जैसी कुप्रथाएँ नही रहीं हैं। लैंगिक अनुपात में भी संथाल एवं आदिवासी समाज की स्थिति बेहतर रही है। कालांतर में कुछ सीमित क्षेत्रो में रही अंध्विश्वास जैसी कुप्रथाओं का युवा पीढ़ी शिक्षा के माध्यम से समापन कर रही हैं।
  • author
    Pradip Sharma
    12 जुलाई 2018
    संथालों में सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि ये बहुत ही अंधविश्वासी होते हैं। किसी भी रोग के उपचार में झाड़ फुंक व ओझा गुणियों का सहारा लेते हैं। हालांकि ये बहुत सीधे सादे और शर्मिले स्वभाव के होते हैं।
  • author
    रविन्द्र "रवि"
    24 फ़रवरी 2019
    संथाल पर लिखी आपकी रचना उत्तम है।पर कुछ जगहों पर तर्कसंगत नहीं लगता।जीवन के 20 साल मैंने गुजारे है उनके साथ।काफी करीब से देखा है।मुझे लगता है औरतों की स्थिति बाकी समाज से बेहतर है।
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    Ranjan
    13 मई 2019
    मैम आपकी लेखनी कला बहुत अच्छी है, आपने जिस प्रकार से शब्दों का चयन किया है यह आपकी अपनी विशेष शैली है। परन्तु फिर भी यह लेख संताल आदिवासी महिलाओ और समाज की स्थिति को न्यायपूर्ण तरीके से नही रख पा रही हैं। यह तो सही है कि आदिवासी समुदाय सरल तथा निश्छल रूप से प्रकृति के करीब रहा है। अपने आडंबर रहित जीवनशैली में ही वे अपना जीवन यापन करते हैं। परन्तु महिलाओं की स्थिति के लिये वर्णित कुछ अंश वास्तिविकता मे न्यायपूर्ण नही है। संताल समाज मे महिलाओ को भी समानता का वही अधिकार प्राप्त है जैसा किसी अन्य आदिवासी समाज मे है एवं प्रारम्भिक काल से ही यह सम्माज मातृसत्तात्मक रहा है। यहाँ पर्दा प्रथा, सती प्रथा, कन्या शिशु हत्या, दहेज जैसी कुप्रथाएँ नही रहीं हैं। लैंगिक अनुपात में भी संथाल एवं आदिवासी समाज की स्थिति बेहतर रही है। कालांतर में कुछ सीमित क्षेत्रो में रही अंध्विश्वास जैसी कुप्रथाओं का युवा पीढ़ी शिक्षा के माध्यम से समापन कर रही हैं।
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    Pradip Sharma
    12 जुलाई 2018
    संथालों में सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि ये बहुत ही अंधविश्वासी होते हैं। किसी भी रोग के उपचार में झाड़ फुंक व ओझा गुणियों का सहारा लेते हैं। हालांकि ये बहुत सीधे सादे और शर्मिले स्वभाव के होते हैं।
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    रविन्द्र "रवि"
    24 फ़रवरी 2019
    संथाल पर लिखी आपकी रचना उत्तम है।पर कुछ जगहों पर तर्कसंगत नहीं लगता।जीवन के 20 साल मैंने गुजारे है उनके साथ।काफी करीब से देखा है।मुझे लगता है औरतों की स्थिति बाकी समाज से बेहतर है।