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संन्यासी और ब्रह्मप्रेत

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मस्ती करते-करते मैं जोर-जोर से अट्टहास करने लगा जिसके चलते गुरुजी की समाधि भंग हो गई। वे गुस्से में कंदरा से बाहर आए और मुझे श्राप दे दिए कि तूँ ब्रह्मप्रेत हो जा और सदा इसी क्षेत्र में विचरण ...

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लेखक के बारे में

प्रभाकर पाण्डेय जन्मतिथि :०१-०१-१९७६ जन्म-स्थान :गोपालपुर, पथरदेवा, देवरिया (उत्तरप्रदेश) शिक्षा :एम.ए (हिन्दी), एम. ए. (भाषाविज्ञान)  पिछले 18-19 सालों से हिन्दी की सेवा में तत्पर। पूर्व शोध सहायक (Research Associate), भाषाविद् के रूप में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.) मुम्बई के संगणक एवं अभियांत्रिकी विभाग में भाषा और कंप्यूटर के क्षेत्र में कार्य। कई शोध-प्रपत्र राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में प्रस्तुत। वर्तमान में सी-डैक मुख्यालय, पुणे में कार्यरत। विभिन्न हिंदी, भोजपुरी पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Sandhya Singh "Sheelu"
    14 जुलाई 2017
    Khubsurat kahani .kya ye sach the. achi lgi .bbut dino baad apki kahani pdhne ko mile .Dhnyawad
  • author
    Priyanka tiwari
    03 जनवरी 2018
    nice story Pandit ji,,,,, zindgi kbhi kuch aisa ho jata h jis pr insan wishwash nhi kr pata...... pr kuch chije smjh s preee hotiii h........ Dhnyawad aisi Acchi storie K liye
  • author
    Gyanendra Kumar
    02 जनवरी 2019
    बहुत ही सुंदर कथा है मित्र
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    Sandhya Singh "Sheelu"
    14 जुलाई 2017
    Khubsurat kahani .kya ye sach the. achi lgi .bbut dino baad apki kahani pdhne ko mile .Dhnyawad
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    Priyanka tiwari
    03 जनवरी 2018
    nice story Pandit ji,,,,, zindgi kbhi kuch aisa ho jata h jis pr insan wishwash nhi kr pata...... pr kuch chije smjh s preee hotiii h........ Dhnyawad aisi Acchi storie K liye
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    Gyanendra Kumar
    02 जनवरी 2019
    बहुत ही सुंदर कथा है मित्र