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सांझ सहचरी

4.6
9992

‘‘जीजी उठो, चाय ले आई.’’ ‘‘अरे... मुझे जगा दिया होता. मैं बना देती.’’ ‘‘इस बुढ़ापे में हम दोनों को ही अच्छी नींद कहां आती है. तुक्वहारी झपकी-सी लग गई थी, सो नहीं उठाया. मैं ही बना लाई, आज मेरे ...

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लेखक के बारे में
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शिल्पा शर्मा

पत्रकारिता का 18 वर्षों काअनुभव. कविता संग्रह ‘सतरंगी मन’ और कहानी संग्रह ‘तुम सी’ प्रकाशित. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानियां और कविताओं का प्रकाशन.

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Dhirendra Kumar
    22 October 2019
    काश हकीकत मे रिश्तों में सच मे ही ऐसी आत्मीयता हो पाती।
  • author
    sonika
    12 January 2019
    very nice story
  • author
    kalpana
    20 November 2018
    बहुत सुंदर !!!!!
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  • author
    Dhirendra Kumar
    22 October 2019
    काश हकीकत मे रिश्तों में सच मे ही ऐसी आत्मीयता हो पाती।
  • author
    sonika
    12 January 2019
    very nice story
  • author
    kalpana
    20 November 2018
    बहुत सुंदर !!!!!