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संदेह

4.2
15523

रामनिहाल अपना बिखरा हुआ सामान बाँधने में लगा। जँगले से धूप आकर उसके छोटे-से शीशे पर तड़प रही थी। अपना उज्ज्वल आलोक-खण्ड, वह छोटा-सा दर्पण बुद्ध की सुन्दर प्रतिमा को अर्पण कर रहा था। किन्तु प्रतिमा ...

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लेखक के बारे में
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जयशंकर प्रसाद
समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Indradeo Kumar
    04 फ़रवरी 2021
    जिंदगी में हर किसी को कहीं न कहीं पर किसी न किसी से एतबार होना लाजमी है! मन का बहकावे में इंसान चहुँ ओर नजरें दौराये पल पल ज्ञान की अनभिज्ञता को अपने हिसाब से बाटने का प्रयासरत रहता है!
  • author
    11 जुलाई 2019
    प्रसाद जी की रचना की समीक्षा कोई कैसे कर सकता है ? वो अनुभूति कहाँ से आ सकती है जो समीक्षा की रचना कर सके ?
  • author
    Amartya Dandapat
    02 नवम्बर 2018
    samajhne me thodi mushkil hai lekin achi hai hamare school ki book me bhi hai famous hai
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    Indradeo Kumar
    04 फ़रवरी 2021
    जिंदगी में हर किसी को कहीं न कहीं पर किसी न किसी से एतबार होना लाजमी है! मन का बहकावे में इंसान चहुँ ओर नजरें दौराये पल पल ज्ञान की अनभिज्ञता को अपने हिसाब से बाटने का प्रयासरत रहता है!
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    11 जुलाई 2019
    प्रसाद जी की रचना की समीक्षा कोई कैसे कर सकता है ? वो अनुभूति कहाँ से आ सकती है जो समीक्षा की रचना कर सके ?
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    Amartya Dandapat
    02 नवम्बर 2018
    samajhne me thodi mushkil hai lekin achi hai hamare school ki book me bhi hai famous hai