कैसा हो साहित्य कि जब साहित्यकार सम्मान लौटाने पर विवश हो तो भव्य जन आंदोलन खड़े हो जावें देश के विभिन्न अंचलो से रचनाकारो , लेखको , बुद्धिजीवियों द्वारा साहित्य अकादिमियो के सम्मान वापस करने की होड़ सी लगी हुई है . संस्कृति विभाग , सरकार , प्रधानमंत्री जी मौन हैं .जनता चुप है . यह स्थिति एक सुसंस्कृत सभ्य समाज के लिये बहुत अच्छी नही कही जा सकती . शाश्वत सत्य है , शब्द मरते नहीं . इसीलिये शब्द को हमारी संस्कृति में ब्रम्ह कहा गया है . यही कारण है कि स्वयं अपने जीवन में विपन्नता से संघर्ष करते ...
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