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समझदारी

4.4
1825

बैंक में सहसा भीड़ बढती जा रही थी सभी पैसे जमा और बदलवाने की होड़ में लगे थे एक से एक बड़े व्यपारी और समझदार नौजवान बैंक में नोट बदलने के लिए लाइन लगाए खड़े हुए थे। बैंक के पूरे कर्मचारी और अधीक्षक सभी को शान्ति बनाये रखने की बार-बार अपील करते लेकिन कोई भी उस बात पर ध्यान देने को तैयार नहीं था। तभी अचानक बैंक अधीक्षक की नजर वहां कौने में खड़ी एक अनपढ़ बूढी बृद्धा पर पड़ी जो हाथ में बैंक की पासबुक और जमापर्ची के साथ चंद रुपये लिए खड़ी थी।तो अधीक्षक ने पूछा-माँ आप क्यों खड़ी हैं यहाँ अकेले तो माँ ने बड़े ...

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लेखक के बारे में
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नवीन बिलैया

सामाजिक एवं लोकतांत्रिक लेखक

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Suresh Sharma
    16 जुलाई 2024
    very nice story and interesting
  • author
    Raja Kumar
    21 जनवरी 2021
    bahut khubsurat hai
  • author
    30 जून 2017
    sanyam jevanka mulbhut aadhar h
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    Suresh Sharma
    16 जुलाई 2024
    very nice story and interesting
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    Raja Kumar
    21 जनवरी 2021
    bahut khubsurat hai
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    30 जून 2017
    sanyam jevanka mulbhut aadhar h