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सकरी गली...

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** नज़्म ** हम नहीं बदले तेरी नज़रें बदल गयीं! अखबार नहीं बदले खबरें बदल गयीं! अपनी उम्मीदों का क्या हाल सुनाता, घर छोड़ना सही था कमरे बदल गयीं! तन्हाइयों ने समझा मेरा साथ ना ...

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लेखक के बारे में

राजेश पाण्डेय "घायल"

समीक्षा
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    आशा रानी शरण
    28 अक्टूबर 2020
    बंजर जमीन छोड़कर नहरे बदल गई बहुत बढ़िया अल्फाज कभी-कभी तो मतलब समझ नहीं आती क्या खूब लिखते हैं आप धन्यवाद नमस्कार। आज मेरा लेख बिना आपकी समीक्षा के अभी तक पड़ी हुई है| मैं यही समझ रही थी कि आज इस मंच पर शायद आप का अवतरण नहीं हुआ है अभी तक पर जब प्रोफाइल पर आई तब दो-दो नज्म मिले। आज पता नहीं कैसे नोटिफिकेशन नहीं मिला था।
  • author
    Sanjay Ni_ra_la
    28 अक्टूबर 2020
    बहुत ही लाज़वाब शानदार अप्रतिम रचना लिखा 💐 💐 🙏 🙏 कमरे और सवेरे बदल गई मे ज़रा गौर फरमाएं लिंग भेद नजर आता है....
  • author
    Tripti
    28 अक्टूबर 2020
    bahut sundar rachna hai Wah wah bahut khub shaandar abhivyakti
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    आशा रानी शरण
    28 अक्टूबर 2020
    बंजर जमीन छोड़कर नहरे बदल गई बहुत बढ़िया अल्फाज कभी-कभी तो मतलब समझ नहीं आती क्या खूब लिखते हैं आप धन्यवाद नमस्कार। आज मेरा लेख बिना आपकी समीक्षा के अभी तक पड़ी हुई है| मैं यही समझ रही थी कि आज इस मंच पर शायद आप का अवतरण नहीं हुआ है अभी तक पर जब प्रोफाइल पर आई तब दो-दो नज्म मिले। आज पता नहीं कैसे नोटिफिकेशन नहीं मिला था।
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    Sanjay Ni_ra_la
    28 अक्टूबर 2020
    बहुत ही लाज़वाब शानदार अप्रतिम रचना लिखा 💐 💐 🙏 🙏 कमरे और सवेरे बदल गई मे ज़रा गौर फरमाएं लिंग भेद नजर आता है....
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    Tripti
    28 अक्टूबर 2020
    bahut sundar rachna hai Wah wah bahut khub shaandar abhivyakti