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सहारा

4.3
15520

गणेश इस बार काफी दिनों के बाद दिल्ली आया था। उसने भैया के मकान पर पहुँचकर काॅल-बटन पुश किया पहली बार...दूसरी बार...फिर तीसरी बार। भीतर से किसी तरह की कोई हलचल उसे सुनाई नहीं दी। कुछ समय तक वह यों ही ...

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समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    कपिल शास्त्री
    23 जुलाई 2018
    आर्थिक संकट के समय बिगड़ते मानसिक संतुलन व घोर निराशा के माहौल में देवर का मानसिक सहारा ही डूबते को किनारा सा लगता है।शहर के शहर में ही नाते रिश्तेदारों से मिलना जुलना कम हो गया है।घाटे में आने के बाद स्वयं भुक्तभोगी ये बात साझा नहीं करते ऐसे में परस्पर मुलाकात व सात्वना रूपी बोल,देख-रेख बहुत मायने रखती है।एक घटना को ही बड़े संवेदनशील तरीके से कहानी का रूप दिया गया है।तकाज़ा करने वालों का भी डर रहता है इसलिए घंटी खराब कर दी जाती है।असुरक्षा घर कर जाती है।'चोखेरवाली'कि याद आ गयी।उम्दा कहानी।
  • author
    सुधीर द्विवेदी
    11 जुलाई 2016
    विघटित होते संयुक्त परिवारों में कथा-नायक का अपने भाई के परिवार के बुरे समय में यूँ साथ खड़े हो जाना मन छु गया . बधाई हो सर ! बहुत अच्छी कथा .
  • author
    Veena Jha
    26 फ़रवरी 2017
    बेहद मार्मिक और सटीक ....
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    कपिल शास्त्री
    23 जुलाई 2018
    आर्थिक संकट के समय बिगड़ते मानसिक संतुलन व घोर निराशा के माहौल में देवर का मानसिक सहारा ही डूबते को किनारा सा लगता है।शहर के शहर में ही नाते रिश्तेदारों से मिलना जुलना कम हो गया है।घाटे में आने के बाद स्वयं भुक्तभोगी ये बात साझा नहीं करते ऐसे में परस्पर मुलाकात व सात्वना रूपी बोल,देख-रेख बहुत मायने रखती है।एक घटना को ही बड़े संवेदनशील तरीके से कहानी का रूप दिया गया है।तकाज़ा करने वालों का भी डर रहता है इसलिए घंटी खराब कर दी जाती है।असुरक्षा घर कर जाती है।'चोखेरवाली'कि याद आ गयी।उम्दा कहानी।
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    सुधीर द्विवेदी
    11 जुलाई 2016
    विघटित होते संयुक्त परिवारों में कथा-नायक का अपने भाई के परिवार के बुरे समय में यूँ साथ खड़े हो जाना मन छु गया . बधाई हो सर ! बहुत अच्छी कथा .
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    Veena Jha
    26 फ़रवरी 2017
    बेहद मार्मिक और सटीक ....