गणेश इस बार काफी दिनों के बाद दिल्ली आया था। उसने भैया के मकान पर पहुँचकर काॅल-बटन पुश किया पहली बार...दूसरी बार...फिर तीसरी बार। भीतर से किसी तरह की कोई हलचल उसे सुनाई नहीं दी। कुछ समय तक वह यों ही ...
आर्थिक संकट के समय बिगड़ते मानसिक संतुलन व घोर निराशा के माहौल में देवर का मानसिक सहारा ही डूबते को किनारा सा लगता है।शहर के शहर में ही नाते रिश्तेदारों से मिलना जुलना कम हो गया है।घाटे में आने के बाद स्वयं भुक्तभोगी ये बात साझा नहीं करते ऐसे में परस्पर मुलाकात व सात्वना रूपी बोल,देख-रेख बहुत मायने रखती है।एक घटना को ही बड़े संवेदनशील तरीके से कहानी का रूप दिया गया है।तकाज़ा करने वालों का भी डर रहता है इसलिए घंटी खराब कर दी जाती है।असुरक्षा घर कर जाती है।'चोखेरवाली'कि याद आ गयी।उम्दा कहानी।
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