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सचमुच तुम पुरुषोत्तम

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सचमुच तुम पुरुषोत्तम ----------------- एक दाग जिंदगी का जीने नहीं देता पर तुमने सैकड़ों कलंकितों को गले लगा कर हाथ थामा, आरोप सहे आह तक न भरी कभी सोचा नहीं खुद की पीड़ा को उलझनों को, उहापोह ...

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लेखक के बारे में

दिल से निकलती रहें दुआएं सदा

समीक्षा
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    अशोक बरोनिया
    15 अगस्त 2020
    बेहतरीन सर। आपको प्रतिलिपि पर देखकर तबियत खुश हो गई सर।
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    अशोक बरोनिया
    15 अगस्त 2020
    बेहतरीन सर। आपको प्रतिलिपि पर देखकर तबियत खुश हो गई सर।