मैं दिल से इंसान, दिमाग से पत्रकार, स्वभाव से आजाद और थोड़ी सी बागी हूं। उत्तर प्रदेश के जिला एटा के एक छोटे से गांव से निकलकर पहले उत्तराखंड से शिक्षा और फिर दिल्ली में नौकरी की शुरुआत हुई, तब से बस दिल्ली की हूं।
दीप्ति मिश्रा ... (चुलबुली ) चमक, ज्वाला, रोशनी, लौ... ये सब वैसे तो मेरे नाम के ही अर्थ हैं, लेकिन यह कह पाना मुश्किल है कि ये सभी मेरे व्यक्तित्व से मेल खाते हैं। मुझे दूसरों को जलाना नहीं आता, हां कभी कभार दूसरे के लिए खुद को जला लेती हूं। भावनाओं के बजाय शब्दों से खेलना अच्छा लगता है।
लेखन का दायरा बहुत व्यापक है और लेखन की एक नहीं अनेक विधाएं हैं। मुझे कौन सी आती है, यह तो आप मेरी कहानियों को पढ़ने के बाद स्वयं समझ लेंगे। हिंदी साहित्य की मुझे बहुत गहरी जानकारी तो नहीं, लेकिन मेरा मानना है कि भावनाओं के मामले में ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है। कभी अपना दर्द, तो कभी दूसरे के दर्द को अपना समझकर दिल-दिमाग में जो विचार कौंधें उन्हें शब्दों के रूप में कागज पर उतार देती हूं। यह फिर यूं कहो कि जिंदगी में आने वाले उतार-चढ़ाव को शब्दों में बंया कर देती हूं। बात जहां तक मेरे परिवार की है, तो हमेशा से इंसानियत के रिश्तों को वरीयता दी है।
रिपोर्ट की समस्या
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