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सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं

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सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं ख़ाक में क्या सूरतें होंगी कि पिन्हाँ हो गईं याद थी हमको भी रन्गा रन्ग बज़्माराईयाँ लेकिन अब नक़्श-ओ-निगार-ए-ताक़-ए-निसियाँ हो गईं थीं बनातुन्नाश-ए-गर्दूँ ...

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लेखक के बारे में

मूल नाम : मिर्ज़ा असदउल्ला बेग़ ख़ान ग़ालिब जन्म : 27 दिसंबर 1796, आगरा (उत्तर प्रदेश) भाषा : उर्दू, फ़ारसी विधाएँ : गद्य, पद्य निधन - 15 फरवरी 1869, दिल्ली

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Himanshu Mishra
    07 जुलाई 2018
    very nice
  • author
    Rais Zoi
    16 अप्रैल 2019
    excellent
  • author
    Vikash Raj
    01 दिसम्बर 2018
    very nice ghazal
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  • author
    Himanshu Mishra
    07 जुलाई 2018
    very nice
  • author
    Rais Zoi
    16 अप्रैल 2019
    excellent
  • author
    Vikash Raj
    01 दिसम्बर 2018
    very nice ghazal