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रोने की हर बात पे कहकहा लगाते हो

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रोने की हर बात पे कहकहा लगाते हो जख्मो पर जलता ,क्यूँ फाहा लगाते हो गिर न जाए आकाश, से लौट के पत्थर अपने मकसद का , निशाना लगाते हो हाथो हाथ बेचा करो ,ईमान- धरम तुम सड़को पे नुमाइश ,तमाशा लगाते हो ...

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लेखक के बारे में
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सुशील यादव

जन्म 30 जून 1952 दुर्ग छत्तीसगढ़ रिटायर्ड डिप्टी कमीश्नर , कस्टम्स,सेन्ट्रल एक्साइज एवं सर्विस टेक्स व्यंग ,कविता,कहानी का स्वतंत्र लेखन |रचनाएँ स्तरीय मासिक पत्रिकाओं यथा कादंबिनी ,सरिता ,मुक्ता तथा समाचार पत्रं के साहित्य संस्करणों में प्रकाशित |अधिकतर रचनाएँ gadayakosh.org ,रचनाकार.org ,अभिव्यक्ति ,उदंती ,साहित्य शिल्पी ,एव. साहित्य कुञ्ज में नियमित रूप से प्रकाशित |

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    19 जुलाई 2020
    मन के विरोधाभास मैं स्वीकृति संजोकर अच्छी कविता लिखी है।👌👍🙂
  • author
    11 जुलाई 2019
    सर। इसे पूरा कीजिये। हमें लगा। कुछ और होता तो बेहतर होता
  • author
    Jai Sharma
    18 फ़रवरी 2025
    राधे राधे सुशील जी वाह क्या बात है बहुत बढ़िया जी
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    19 जुलाई 2020
    मन के विरोधाभास मैं स्वीकृति संजोकर अच्छी कविता लिखी है।👌👍🙂
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    11 जुलाई 2019
    सर। इसे पूरा कीजिये। हमें लगा। कुछ और होता तो बेहतर होता
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    Jai Sharma
    18 फ़रवरी 2025
    राधे राधे सुशील जी वाह क्या बात है बहुत बढ़िया जी