रोने की हर बात पे कहकहा लगाते हो जख्मो पर जलता ,क्यूँ फाहा लगाते हो गिर न जाए आकाश, से लौट के पत्थर अपने मकसद का , निशाना लगाते हो हाथो हाथ बेचा करो ,ईमान- धरम तुम सड़को पे नुमाइश ,तमाशा लगाते हो फूलो से रंज तुम्हे ,खुशबू से परहेज बोलो किन यादों फिर ,बगीचा लगाते हो छन के आती रौशनी ,बस उन झरोखों से संयम सुशील मन ,से शीशा लगाते हो ...
रिपोर्ट की समस्या
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