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रिश्ते

4.0
712

घर में रखा इक क़दम और ताजगी सी आ गई अपनी गुड़िया फेँककर गुड़िया हमारी आ गई ऐसा भी अक्सर हुआ शाहिद कि सोते-जागते मैंने बेटे को पुकारा और बेटी आ गई ******************************* वो थोड़ा सख़्त सा ...

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लेखक के बारे में

जन्म : 07 अक्टूबर 1967 को उत्तर प्रदेश के क़स्बा छपरौली (बागपत) में || न हिंदी है न उर्दू शायरी में/ ज़बाने-हिन्द शाहिद बोलता है.. अपनी रचनाओं में आम ज़बान का प्रयोग करते हुए करीब दो दशक से कवि सम्मेलन मुशायरों के साथ साथ दूरदर्शन, आकाशवाणी के कार्यक्रमों में प्रतिभाग। राष्ट्रीय भाष्य गौरव पुरस्कार 2016 के लिए चयनित। प्रतिभा मंच की ओर से डा. माजिद देवबंदी द्वारा गौरव पुरस्कार। इसके अलावा विभिन्न संगठनों की ओर से कई सम्मान प्रदान किए जा चुके हैं।

समीक्षा
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  • author
    Arun Sharma
    07 ജൂണ്‍ 2019
    vahhh kya bat e sr bhut acha likhte ho ap
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    26 ജൂലൈ 2023
    सुन्दर अभिव्यक्ति । हार्दिक साधुवाद
  • author
    08 മാര്‍ച്ച് 2019
    बहुत बढ़िया सर, लाजवाब
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    Arun Sharma
    07 ജൂണ്‍ 2019
    vahhh kya bat e sr bhut acha likhte ho ap
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    अरविन्द सिन्हा
    26 ജൂലൈ 2023
    सुन्दर अभिव्यक्ति । हार्दिक साधुवाद
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    08 മാര്‍ച്ച് 2019
    बहुत बढ़िया सर, लाजवाब