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रीति- रिवाज़

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रीति रिवाज़ कभी कभी ऐसे मोड़ पर आ जाते हैं की उन्हें निभाना जीते जी मरने से भी बदतर हो जाता है .. ा समय आ गया है की ऐसे रिवाज़ों को हम खुद ही तोड़ de

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लेखक के बारे में
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मंजू सिंह
समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    सोमेश कुमार
    23 मार्च 2018
    वर्ष की विशेष कहानियों में स्थान बनाने के लिए बधाई .कुछ ऐसी ही परम्परा दिल्ली एवं हरियाणा में कुआ पूजन के नाम से मिलती है जहां लड़की वालों को भारी भरकम खर्च करना होता है .परम्परा का ये परिवर्तन सासू का हृदय परिवर्तन के रूप में दिखता तो कहानी और प्रभावी हो जाती
  • author
    बहिष्कृत "आर्य"
    13 नवम्बर 2017
    रीति वो जो प्रीति बढ़ाये, बाकि तो कुरीतियाँ हैं, जिन्हें जितनी जल्द विदा करेंगे उतना ही अच्छा...
  • author
    Amrita Sharma
    16 अक्टूबर 2019
    क्या आपको आज के समय में भी ऐसा लगता है कि एक पढ़ी - लिखी और आत्मनिर्भर महिला इतनी लाचार होती है ? यदि पति साथ नहीं देता तो वह बस लाचार होकर अपने और अपने माता - पिता के साथ हो रहे अन्याय को चुपचाप देखती और घुटती रहती । नजरिया बदलिए । इसे " विशेष कहानी " का दर्जा भी मिल गया , यह तो एक गलत मानसिकता को बढ़ावा देना हुआ ।
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    सोमेश कुमार
    23 मार्च 2018
    वर्ष की विशेष कहानियों में स्थान बनाने के लिए बधाई .कुछ ऐसी ही परम्परा दिल्ली एवं हरियाणा में कुआ पूजन के नाम से मिलती है जहां लड़की वालों को भारी भरकम खर्च करना होता है .परम्परा का ये परिवर्तन सासू का हृदय परिवर्तन के रूप में दिखता तो कहानी और प्रभावी हो जाती
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    बहिष्कृत "आर्य"
    13 नवम्बर 2017
    रीति वो जो प्रीति बढ़ाये, बाकि तो कुरीतियाँ हैं, जिन्हें जितनी जल्द विदा करेंगे उतना ही अच्छा...
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    Amrita Sharma
    16 अक्टूबर 2019
    क्या आपको आज के समय में भी ऐसा लगता है कि एक पढ़ी - लिखी और आत्मनिर्भर महिला इतनी लाचार होती है ? यदि पति साथ नहीं देता तो वह बस लाचार होकर अपने और अपने माता - पिता के साथ हो रहे अन्याय को चुपचाप देखती और घुटती रहती । नजरिया बदलिए । इसे " विशेष कहानी " का दर्जा भी मिल गया , यह तो एक गलत मानसिकता को बढ़ावा देना हुआ ।