चलो कुछ किस्से बदल के देख लें, जो सितारों की नदी है, उस ओर, बादलों के; वहाँ किसी के दुपट्टे को थाम कर अपने ख्वाबों वाली नाव का लंगर डाल लें। कुछ जो अश्क हैं बह चुके, अब तो मोती से बन चमकने लगे हैं मेरे सिरहने के साथ बहते समंदर में॥ तो इन को पिरो कर एक रूह के धागे में, उसके दुपट्टे में लपेट कर सौंप दें उसे॥
जो दुख है, उसे हास्य कर दें, और हँसाता है जहाँ को उसके अश्क पोंछ दें॥।
आधी कतारें.... ©अश्क आशीष
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