**राधा बुआ** सुबह आंख खुली तो घर मे कुछ हलचल सी थी।वह आम सुबह सी नहीं थी। 8-9 साल की उम्र में उतनी समझ भी नहीं थी। हम जिस घर में किराए पर रहते थे, उसी के भूतल पर मकान मालिक का खूब भर-पूरा ...
राधा बुआ के माध्यम से आपने समाज की क्रूर सच्चाई को दर्शाया है। आधुनिकता का दम्भ भरने वाला यह समाज कुपुत्र को भी सम्पति में हिस्सा देता है किन्तु एक असहाय निर्धन पुत्री को उस सम्पत्ति में हिस्सेदार नहीं। कहानी बहुत अच्छी बन पड़ी है।
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राधा बुआ के माध्यम से आपने समाज की क्रूर सच्चाई को दर्शाया है। आधुनिकता का दम्भ भरने वाला यह समाज कुपुत्र को भी सम्पति में हिस्सा देता है किन्तु एक असहाय निर्धन पुत्री को उस सम्पत्ति में हिस्सेदार नहीं। कहानी बहुत अच्छी बन पड़ी है।
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