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प्यूंली (कुमाऊँनी लोक कथा)

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प्यूलीं फ्यूंली(प्यूंली) के खिलते ही पहाड़ जी उठे, गमक चमक उठे पहाड़ पीले रंग की प्यूंली से, कड़कड़ाती ठन्ड पहाड़ से विदा लेने लगी, सूखे या ठन्ड से जम आये नदी नालों में पानी की ...

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लेखक के बारे में
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डा.कुसुम जोशी

सबसे मुश्किल होता है अपने बारे में लिखना...

समीक्षा
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  • author
    Sulekha Chatterjee
    15 ಮಾರ್ಚ್ 2021
    लोक कथाओं का आनंद ही कुछ और है।बहुत बढ़िया है यह लोककथा 👍👍👍👍👍👍
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    Sulekha Chatterjee
    15 ಮಾರ್ಚ್ 2021
    लोक कथाओं का आनंद ही कुछ और है।बहुत बढ़िया है यह लोककथा 👍👍👍👍👍👍