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शाश्वत प्रेम

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3.9

“शिउली, तुम तो जरा भी नहीं बदली | मैंने सोचा था कि तुम विदेश जाकर फिरंगन हो गयी होगी ।" शिउली मुस्कुरा उठी, "मनुष्य का असली स्वरूप प्रेम है जो कभी नहीं बदलता।" "लो देखो मैं तुम्हारे लिए हरसिंगार ...