कभी तुम्हारी चुड़ियों की खनक से सुबह होती थी, जब तुम चाय लिए हाथ में मुझे डान्ट कर जगाने आती थी। बड़े नखरे किये मैनें उठने में, हर रोज तुम परेशान होती थी। बड़ा अच्छा दिन गुजरता, जब सुबह-सुबह तुम ...
वर्मन जी सबसे से पहले बहुत-बहुत शुभकामनाएं।लगता यह रचना आप ने दादा-दादी, नाना-नानी को समर्पित की है।आप की कहानी का ग्राफ़ काफी ऊपर जाता है।माँ सरस्वती का आशीर्वाद हमेशा बना रहे।
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