पुरूष, कहते हैं ना मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं, कर्तव्यों से बन्धा हुआ, उसी समाज का एक हिस्सा है पुरुष, जिसके पास अपना कहने को कुछ रिश्ते और साथ देने को उनकी चाहते, उसकी खुशी हां उसमें है जिसमें ...
आपने कहानी में वो सब कह दिया जो आज का खासकर मध्यमवर्गीय परिवार में होता आ रहा है जहाँ सब नारी की बात करते हैं वहीं आप नारी मन होकर पुरुष के अन्तर्मन की कोशिश के बाद की विवशताओं और मजबूरी को समझा.
अनेक अनेक धन्यवाद
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