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पुरुष

1825
4.4

पुरूष, कहते हैं ना मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं, कर्तव्यों​ से बन्धा हुआ, उसी समाज का एक हिस्सा है पुरुष, जिसके पास अपना कहने को कुछ रिश्ते और साथ देने को उनकी चाहते​, उसकी खुशी हां उसमें है जिसमें ...