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पूर्णाहुति

4.9
181

“तुम अच्छी तरह से जानती हो कि मुझ पर कितनी ज़िम्मेदारियाँ हैं, इन सबको छोड़कर एम.बी.ए. करने के लिए कैसे चला जाऊँ?”– अदम्य सरिता के सुझाव से बिल्कुल सहमत नहीं था। “यहाँ मैं तो हूँ न? यहाँ की सारी ...

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लेखक के बारे में

पूछो न ये क्यूँ “मेघना” बुझती नहीं तेरी हँसी हो दर्द कितना भी ये दिल रोता नहीं है क्या करूँ©"मेघना"

समीक्षा
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    पवनेश मिश्रा
    15 जनवरी 2021
    पूर्णाहुति, अंदर तक हिल गया हूं पढ़कर तनूजा जी, सरिता जैसे कितने व्यक्तित्व हैं जो जीवन को पूरी निष्ठा और समर्पण से कर्तव्य की यज्ञाहुती में झौंक देते हैं लेकिन उन्हें अपने जीवन में किसी ना किसी अदम्य से दुत्कार ही प्राप्त होता है, सादर 🙏🏻🌹🙏🏻,
  • author
    Manju Pant
    14 जनवरी 2021
    बहुत बेहतरीन कथानक है । दिल को छू़ं गया । गरिमामय रिश्तों में इतनी स्वार्थ परता , वास्तव में क्षुद्र बिन्दु ही था । शुभकामनाएं आपको ।🙏🌹🙏
  • author
    04 अप्रैल 2022
    उफ़्फ़, कितनी गहराई है इस कहानी में, आपकी कहानियां कहीं न कहीं इसी समाज का हिस्सा ही हैं। 👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌
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    पवनेश मिश्रा
    15 जनवरी 2021
    पूर्णाहुति, अंदर तक हिल गया हूं पढ़कर तनूजा जी, सरिता जैसे कितने व्यक्तित्व हैं जो जीवन को पूरी निष्ठा और समर्पण से कर्तव्य की यज्ञाहुती में झौंक देते हैं लेकिन उन्हें अपने जीवन में किसी ना किसी अदम्य से दुत्कार ही प्राप्त होता है, सादर 🙏🏻🌹🙏🏻,
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    Manju Pant
    14 जनवरी 2021
    बहुत बेहतरीन कथानक है । दिल को छू़ं गया । गरिमामय रिश्तों में इतनी स्वार्थ परता , वास्तव में क्षुद्र बिन्दु ही था । शुभकामनाएं आपको ।🙏🌹🙏
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    04 अप्रैल 2022
    उफ़्फ़, कितनी गहराई है इस कहानी में, आपकी कहानियां कहीं न कहीं इसी समाज का हिस्सा ही हैं। 👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌