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पुनिया और कागज की कश्ती

4.6
2408

"अभाव में जीता बालमन न खेल खिलौने न ही कोई उपहार चाहिए इन्हें तो बस कागज की कश्ती और तनिक बरखा की एक फुहार चाहिए......."     सावन का महीना, बड़े - बड़े पहाड़ जैसे नीम पेड़ की बलिष्ठ डालें खुद की ...

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लेखक के बारे में
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अंकिता सिंह

पुरस्कार मायने नहीं करता, तिरस्कार न मिले कामना है यही🙏😊

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    16 जुलाई 2020
    बेहद मार्मिक कहानी,, पढ़ते पढ़ते में भावुक हो गयी अंकिता जी,, अगर इस कहानी को कोई पुरस्कार नही मिला तो शायद प्रतिलिपि पर जजमेन्ट टीम सही से काम नही करेगी लगता है 👍👍
  • author
    पवनेश मिश्रा
    16 जुलाई 2020
    आपने इस कथानक के द्वारा जीवन के उन प्रश्नों को उकेरा है अंकिता जी, जिनके ज़बाब प्रकृति या ईश्वर दें तो ही संभव है, कन्या के लिए इतने बन्धन, इतने नियम, इतनी रस्में, इतने रिवाज, और इन सबसे हजार गुणा ज्यादा ढकोसले, चार लोग क्या कहेंगे? समाज में कैसे मुंह दिखाएंगे? लड़की है ऐसे कैसे चलेगा? कम से कम हमने आज तक इन सवालों का औचित्य, और तथाकथित समाज के चार लोग तब नहीं देखे जब वास्तव में जरूरत हो। कथानक ने जितना द्रवित किया है उससे कहीं अधिक आपकी वैचारिक प्रतिबद्धता से पुनः प्रभावित हूं। बहुत बहुत बधाई 🙏🌹🙏,
  • author
    Sushma Sharma
    16 जुलाई 2020
    kahani ke ant Mai समाप्त 🙏 जो लिखा है वहां से तो इसकी शुरुवात है अंकिता! इसको पढ़ने के बाद सीख लेनी होगी कि कागज की नाव समय के थपेड़ों को सहन नहीं कर सकती! आज शायद मैंने आपको पहली बार पढ़ा है, बहुत उम्दा सोच है आपकी🙏🙏🙏 शानदार सृजन👍 पुनिया के घर वाले जैसे लोग आज भी पढ़ने लिखने में अक्षम हैं , सोच वहीं की वहीं है , कौन समझा सकता है?????? कानून बनने के बाद भी ऐसा होता है दुर्भाग्य है पुनिया जैसी बच्चियों का😒
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    16 जुलाई 2020
    बेहद मार्मिक कहानी,, पढ़ते पढ़ते में भावुक हो गयी अंकिता जी,, अगर इस कहानी को कोई पुरस्कार नही मिला तो शायद प्रतिलिपि पर जजमेन्ट टीम सही से काम नही करेगी लगता है 👍👍
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    पवनेश मिश्रा
    16 जुलाई 2020
    आपने इस कथानक के द्वारा जीवन के उन प्रश्नों को उकेरा है अंकिता जी, जिनके ज़बाब प्रकृति या ईश्वर दें तो ही संभव है, कन्या के लिए इतने बन्धन, इतने नियम, इतनी रस्में, इतने रिवाज, और इन सबसे हजार गुणा ज्यादा ढकोसले, चार लोग क्या कहेंगे? समाज में कैसे मुंह दिखाएंगे? लड़की है ऐसे कैसे चलेगा? कम से कम हमने आज तक इन सवालों का औचित्य, और तथाकथित समाज के चार लोग तब नहीं देखे जब वास्तव में जरूरत हो। कथानक ने जितना द्रवित किया है उससे कहीं अधिक आपकी वैचारिक प्रतिबद्धता से पुनः प्रभावित हूं। बहुत बहुत बधाई 🙏🌹🙏,
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    Sushma Sharma
    16 जुलाई 2020
    kahani ke ant Mai समाप्त 🙏 जो लिखा है वहां से तो इसकी शुरुवात है अंकिता! इसको पढ़ने के बाद सीख लेनी होगी कि कागज की नाव समय के थपेड़ों को सहन नहीं कर सकती! आज शायद मैंने आपको पहली बार पढ़ा है, बहुत उम्दा सोच है आपकी🙏🙏🙏 शानदार सृजन👍 पुनिया के घर वाले जैसे लोग आज भी पढ़ने लिखने में अक्षम हैं , सोच वहीं की वहीं है , कौन समझा सकता है?????? कानून बनने के बाद भी ऐसा होता है दुर्भाग्य है पुनिया जैसी बच्चियों का😒