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4.2
316

मुँह अँधेरे जागती है एक बुढ़िया, बुनती है समय काँपते हाथों से। लीपती है बीती हर काली रात, पानी लाती है सात समन्दर का। धोती हमारे माथों पर जमी फ़ेन, थकी टाँगों से चलती है डगमग। कभी थका नहीं इसका अक्षत ...

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लेखक के बारे में
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    02 जनवरी 2023
    अत्यन्त ही सारगर्भित रचना । हार्दिक साधुवाद
  • author
    Manjit Singh
    11 अगस्त 2020
    environment saving poetry. God bless you
  • author
    गीता लिम्बू
    06 अगस्त 2017
    भाव और अभिव्यजंना सुदंर हैं।
  • author
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    02 जनवरी 2023
    अत्यन्त ही सारगर्भित रचना । हार्दिक साधुवाद
  • author
    Manjit Singh
    11 अगस्त 2020
    environment saving poetry. God bless you
  • author
    गीता लिम्बू
    06 अगस्त 2017
    भाव और अभिव्यजंना सुदंर हैं।