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प्रेम का बीज

4.2
617

प्रेम का जो बीज तुमने ..... अबूझ ही बो दिया था वो कब प्रस्फुटित हो अंकुरित हो गया... पता ही न चला तेरे विरह के ताप से खिल गया.... अपने अश्कों से सींचन किया है इसका अब वो पौधा व्रक्श बन ...

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लेखक के बारे में
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कविता पारीक

मेरा नाम कविता है | नाम के अनुसार मुझे कविता लिखना व पढ़ना पसन्द है |

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    मौमिता बागची
    16 नवम्बर 2018
    loved it..."जब कवि का उर बिंध जाता है किसी अज्ञात वेदना की शर से, तब झर-झर कविता बहती है, निर्झर बन कवि के अंतस् से।" मैम, मुझे आप जैसा लिखना तो नहीं आता, बस कोशिश भर कर सकती हूः। अगर वक्त मिले तो जरा मेरी रचनाओं को भी पढ़िएगा। आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।
  • author
    Yogesh motivational video
    25 मार्च 2023
    अच्छा है किंतु शब्दों का चयन थोड़ा कमजोर हैअच्छा है किंतु शब्दों का चयन थोड़ा कमजोर है बहुत सुंदर
  • author
    Jayshree Rai
    20 फ़रवरी 2022
    अति सुंदर रचना👌👌👌👌👌
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    मौमिता बागची
    16 नवम्बर 2018
    loved it..."जब कवि का उर बिंध जाता है किसी अज्ञात वेदना की शर से, तब झर-झर कविता बहती है, निर्झर बन कवि के अंतस् से।" मैम, मुझे आप जैसा लिखना तो नहीं आता, बस कोशिश भर कर सकती हूः। अगर वक्त मिले तो जरा मेरी रचनाओं को भी पढ़िएगा। आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।
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    Yogesh motivational video
    25 मार्च 2023
    अच्छा है किंतु शब्दों का चयन थोड़ा कमजोर हैअच्छा है किंतु शब्दों का चयन थोड़ा कमजोर है बहुत सुंदर
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    Jayshree Rai
    20 फ़रवरी 2022
    अति सुंदर रचना👌👌👌👌👌