मैं थरथराते हाथों से लिखती हूँ प्रेम और कुछ जलती हुई आँखें मुझे घेर लेती हैं कुछ तलवारें म्यानों से बाहर आकर चमकने लगती हैं घबडाकर मैं मिटाना चाहती हूँ ‘प्रेम ‘ का हरेक हर्फ़ और प्रेम ढीठता से ...
मैं थरथराते हाथों से लिखती हूँ प्रेम और कुछ जलती हुई आँखें मुझे घेर लेती हैं कुछ तलवारें म्यानों से बाहर आकर चमकने लगती हैं घबडाकर मैं मिटाना चाहती हूँ ‘प्रेम ‘ का हरेक हर्फ़ और प्रेम ढीठता से ...