प्रतिलिपि से एक बात संभव हो गई कि जिन विषयों पर कुछ लिखने को हम सोचते हैं और बस सोचते ही राह जाते हैं,उन पर लिखने का अवसर प्रतिलिपी से मिल जाता है जैसे "पड़ोस का घर "एक घर क्या,हर घर की अपनी एक कहानी ...
ऐसी कितनी ही कहानियाँ हमें पढ़ने को मिलती हैं!मुझे विश्वास नहीं होता कि ऐसी औलाद भी होती हैं, पर वास्तविकता है कि होती हैं।एक पक्ष और दिखता है मुझे।कहीं माता-पिता से ही पालनपोषण और संस्कार देने में चूक तो नहीं होती?विचार होना चाहिए।कुल मिलाकर दुःखद है।
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ऐसी कितनी ही कहानियाँ हमें पढ़ने को मिलती हैं!मुझे विश्वास नहीं होता कि ऐसी औलाद भी होती हैं, पर वास्तविकता है कि होती हैं।एक पक्ष और दिखता है मुझे।कहीं माता-पिता से ही पालनपोषण और संस्कार देने में चूक तो नहीं होती?विचार होना चाहिए।कुल मिलाकर दुःखद है।
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