हाहाकार - धू - धू कर जलता धरती का तन -मन ; सूखा ; चाक - चाक हुआ किसान का कलेजा ; पानी की किल्लत -- आज का परिदृश्य मन में एक साथ कई प्रश्न और दुःख की सृष्टि कर जाता है | सूखा - क्या सिर्फ धरती का सूखा ? ज़रा विचार करें मन का सूखा भी तो है | आज हमने किया दोहन प्रकृति का और सूख रही है धरती - आज हमने किया दोहन मानवीय भावनाओं का और सूख रहा है हमारा मन | मानवीय भावनाओं का दोहन - सुनने में ही कुछ अजीब सा लगता है यह | लेकिन ज़रा गौर करें आज से बीस वर्ष पहले के सामाजिक संस्कारों पर |क्या आज हम वही हैं ? ...
रिपोर्ट की समस्या
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