यह जिंदगी का सफ़र सुख-दुख की धूप छांव है, कहीं रोशनी की किरण है, कहीं छायाअंधेरा घना है। समय चक्र हमेशा बदलता रहा है, सृष्टि क्रम को कोई बदल ना पाया, प्रकृति ने हमें मर्यादा में रहना सिखाया, सुख का ...
सेवा निवृत प्रधानाचार्य हूं। साहित्यिक अभिरुचि के कारण सन् २००० से विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। 'अहिंसा आज भी प्रासंगिक है' २५६ प्रष्ठ की एक पुस्तक भी प्रकाशित हो चुकी है।
सारांश
सेवा निवृत प्रधानाचार्य हूं। साहित्यिक अभिरुचि के कारण सन् २००० से विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। 'अहिंसा आज भी प्रासंगिक है' २५६ प्रष्ठ की एक पुस्तक भी प्रकाशित हो चुकी है।
रिपोर्ट की समस्या
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