पूछते हो दर्द का क्यूँ सिलसिला हूँ सुर्ख़ियों में आ गया मैं क्यूँ भला हूँ।1 जानने की चाह रखते हो सुखनवर कौन माटी का भला मैं भी गढ़ा हूँ।2 माँगने की तो कभी आदत नहीं थी पुंज बनकर रौशनी का बस जला हूँ।3 आँख को आँसू कभी देता नहीं मैं नीर बनकर अनवरत बहता रहा हूँ।4 पाँव में छाले पड़े तो क्या करूँ अब कंटकों पर भी सदा चलता रहा हूँ।5 युद्ध अंतर में बहुत होते रहे हैं कम नहीं अबतक सुनो मैं भी लड़ा हूँ।6 माप लेगी साँस मेरी चोटियों को भाँपता मौसम तराई में चला हूँ।7 चाहतों का छूटता दामन कभी क्या सोचकर कुछ तो ...
रिपोर्ट की समस्या
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