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poem of the day.

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वह कभी धूप कभी छांव लगे मुझको क्या-क्या ना मेरा गांव लगे। एक रोटी के तअक्कुब में चला हूं इतना कि मेरा पांव किसी और ही का पांव लगे। रोजी रोटी की तलब जिस को कुचल देती है उस की ललकार भी एक से सेहमी ...

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लेखक के बारे में

मैं कोई लेखक नहीं, बस मेरी कल्पनाओं को लिखना मेरा शौक है। [email protected] @marghoobi

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Aman Khan
    28 मई 2020
    भाई बेहतरीन है लेकिन हमें आप के खुद के विचार खुद के रचना का इंतजार रहेगा
  • author
    ushaben parmar
    28 मई 2020
    nice
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  • author
    Aman Khan
    28 मई 2020
    भाई बेहतरीन है लेकिन हमें आप के खुद के विचार खुद के रचना का इंतजार रहेगा
  • author
    ushaben parmar
    28 मई 2020
    nice