सुनो,, छु जाती अमरूद के पेड़ की ठंडी ठंडी छांव..!! आज भी ख्वाबों में आता पिया तेरा वो गाँव...!! वो अमरुद कुछ कच्चा सा कुछ पक्का सा था.. प्यार का भी पहला स्वाद हमने वही चखा था.. वो गाँव की तपती ...
हर पंक्तियों में खुबसूरत एहसास झलकता है।
उन्हीं लम्हों में जीने के लिए दिल मचलता है।।
हम बड़े ही क्यों हुए बचपन ही खुशनुमा था।
जिंदगी रही ही कहाँ,अब तो दिन भर ढलता है।।
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