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पितृसत्ता.

4.4
596

बस एक वही ज़िम्मेदार नहीं, वह बेचारा तो उपज है हमारे समाज की, बस वही कर रहा है जो हमने सिखाया है उसे, घुटनों पर रेंगता, उठ भी नहीं सकता, pressure cooker हैं, फटने को तैयार, हल्का-सा धक्का, और फट पड़ा ...

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लेखक के बारे में
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कुमार लव
समीक्षा
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  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    23 अक्टूबर 2015
    राष्ट्र भाषा का अपमान करती अत्यंत सारहीन व अप्रासांगिक कविता है ।
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    Satyendra Kumar Upadhyay
    23 अक्टूबर 2015
    राष्ट्र भाषा का अपमान करती अत्यंत सारहीन व अप्रासांगिक कविता है ।