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'पिंक' फ़िल्म की समीक्षा

4.1
7385

"नो मीन्स नो", "नहीं मतलब नहीं", लड़कों को ना सुनने की आदत डालनी होगी: फ़िल्म "पिंक" की समीक्षा: "नो मीन्स नो", "नहीं मतलब नहीं", लड़की की ना को ना ही मानना। ये बात समझना, लड़कों के लिए ज़रा मुश्किल है, ...

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लेखक के बारे में

जयपुर से मैनेजमेंट में स्नातक पूर्ण कर मैनेजमेंट में स्नातकोत्तर करने को दिल्ली आया, फाइनेंस और मार्केटिंग में एम. बी. ए. करने के पश्चात् मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने लगा, लेकिन रंगमंच और साहित्य के प्रति अपनी रूचि को ज़्यादा समय तक छिपाकर नहीं रख सका । रंगकर्म शुरू कर दिया, लगातार कर रहा हूँ । रंगमंच में स्नातकोत्तर भी इसी वर्ष पूरा कर चुका हूँ। कुछ-कुछ लिखने की कोशिश करता रहता हूँ, मुख्यतया लघु कहानियाँ, कवितायेँ और नाटक लिखने की कोशिशें करता हूँ, अब वो सफल हैं या असफल, ये तो आप जैसे गुणी जनों के समक्ष फैलाने से ही पता लगेगा ।

समीक्षा
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  • author
    शोभा शर्मा
    14 ಆಗಸ್ಟ್ 2018
    आपने यह लिखा कि लड़कियों को विवेक से काम लेना चाहिये .और लड़कियों की नादानियों से कितनों की जिंदगी बरवाद हो सकती है तो क्या यह भी पुरूष प्रधान सोच नहीं है .लड़कों को बचपन से ही ऐसी शिक्षा दीजिये न कि वे स्वयं की गलती नादानी अपने सिरलेना सीखें .लड़कियों अपने जैसा ही ईंसान माने न कि अपने दोष लड़कियों के सिर मढ़ दें .सोचिये यदि लड़कों के मन मैं गलत भावना आये ही न तो संसार कितना सुंदर हो जायेगा . लड़कियों को असुरक्षित कौन बनाता हैं ? प्रश्न तो यही शाश्वत है .तो लड़कों को ही विवेक से काम लेना क्यों न सिखाया जाये.शेष समीक्षा आपने बहुत सुंदर की है.
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    21 ಸೆಪ್ಟೆಂಬರ್ 2016
    आपकी समीक्षा पढ़कर लग रहा हैं कि बहुत समय बाद कोई अच्छी फिल्म आई हैं. मेरे हिसाब से अब भारतीय कानून को भी पुरी तरह बदलकर कड़ाई से लागू करने की जरुरत हैं.
  • author
    Nitin Dixit
    09 ಡಿಸೆಂಬರ್ 2017
    लेखक ने फिल्म की समीक्षा बहुत ही अच्छी की
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    शोभा शर्मा
    14 ಆಗಸ್ಟ್ 2018
    आपने यह लिखा कि लड़कियों को विवेक से काम लेना चाहिये .और लड़कियों की नादानियों से कितनों की जिंदगी बरवाद हो सकती है तो क्या यह भी पुरूष प्रधान सोच नहीं है .लड़कों को बचपन से ही ऐसी शिक्षा दीजिये न कि वे स्वयं की गलती नादानी अपने सिरलेना सीखें .लड़कियों अपने जैसा ही ईंसान माने न कि अपने दोष लड़कियों के सिर मढ़ दें .सोचिये यदि लड़कों के मन मैं गलत भावना आये ही न तो संसार कितना सुंदर हो जायेगा . लड़कियों को असुरक्षित कौन बनाता हैं ? प्रश्न तो यही शाश्वत है .तो लड़कों को ही विवेक से काम लेना क्यों न सिखाया जाये.शेष समीक्षा आपने बहुत सुंदर की है.
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    21 ಸೆಪ್ಟೆಂಬರ್ 2016
    आपकी समीक्षा पढ़कर लग रहा हैं कि बहुत समय बाद कोई अच्छी फिल्म आई हैं. मेरे हिसाब से अब भारतीय कानून को भी पुरी तरह बदलकर कड़ाई से लागू करने की जरुरत हैं.
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    Nitin Dixit
    09 ಡಿಸೆಂಬರ್ 2017
    लेखक ने फिल्म की समीक्षा बहुत ही अच्छी की