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वह भी क्या दिन थे। पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय पत्र खूब चलते थे| आजकल के बच्चे तो जानते ही नहीं ये किन बलाओं के नाम हैं | बस विषय के एक भाग के रूप में पत्र लेखन करते हैं।

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लेखक के बारे में
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सविता मिश्रा

हमारा नाम ही हमारी पहचान | ....भावों के खजाने से रचनाएँ यूँ ही आती रहेंगी , आप सब बस उन रचनाओं पर प्यार बेशुमार लुटाते रहिए | #सविता मिश्रा #अक्षजा

समीक्षा
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  • author
    Garima Saxena
    07 सितम्बर 2018
    ये तो वाकई सच है कि आज कल की generation पत्र लिखा नही जानती हमको भी नही पता कि कैसे लिखते है boring से लगता है पर हमारी माँ और दीदी ने बताया कि जैसे fb पर बात करते है chatting में बिल्कुल उसी तरह पर फिर भी हमको समझ में नही आया.........परन्तु ये कहानी पढ़ कर लगा की पत्र की जगह कोई चीज़ नही ले सकती उसको पढ़ कर जो feel होता है जो एक दम अलग ही एहसास है 💖💖
  • author
    Mamta Singh Devaa
    07 सितम्बर 2018
    अच्छा लेख.... अब तो बस डाकघर में ही मिल जाये लिफाफे , अंतर्देशी और पोस्टकार्ड तो बड़ी बात है
  • author
    Ajit Sharma
    07 सितम्बर 2018
    काफी पसंद आयी । कहानी....,,
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    Garima Saxena
    07 सितम्बर 2018
    ये तो वाकई सच है कि आज कल की generation पत्र लिखा नही जानती हमको भी नही पता कि कैसे लिखते है boring से लगता है पर हमारी माँ और दीदी ने बताया कि जैसे fb पर बात करते है chatting में बिल्कुल उसी तरह पर फिर भी हमको समझ में नही आया.........परन्तु ये कहानी पढ़ कर लगा की पत्र की जगह कोई चीज़ नही ले सकती उसको पढ़ कर जो feel होता है जो एक दम अलग ही एहसास है 💖💖
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    Mamta Singh Devaa
    07 सितम्बर 2018
    अच्छा लेख.... अब तो बस डाकघर में ही मिल जाये लिफाफे , अंतर्देशी और पोस्टकार्ड तो बड़ी बात है
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    Ajit Sharma
    07 सितम्बर 2018
    काफी पसंद आयी । कहानी....,,