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पीट कर मुझे तुम मर्द बनते हो, तनते हो मेरे ही सामने

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पीट कर मुझे तुम मर्द बनते हो, तनते हो मेरे ही सामने, भूल गए उन वचनों को दिए थे जब आये थे हाथ थामने। असली मर्दानगी मुझ पर हाथ उठाने में नहीं है जान लो, अपनी कमी छिपाने को पीटते हो कायर हो तुम मान लो। ...

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लेखक के बारे में

पूरा नाम: डॉ सुलक्षणा अहलावत लेक्चरर इन इंग्लिश एजुकेशन डिपार्टमेंट हरियाणा गवर्मेंट

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Daya Shankar Sharma
    02 जून 2018
    महिलाओं की दशा ऒर पुरुषों की दिशा सुधारने का एक सुंदर प्रयास ।
  • author
    19 जून 2019
    Sundr rachna shubhkamnaye
  • author
    राहुल ध्रुव
    11 अगस्त 2019
    बहुत सुन्दर रचना है
  • author
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  • author
    Daya Shankar Sharma
    02 जून 2018
    महिलाओं की दशा ऒर पुरुषों की दिशा सुधारने का एक सुंदर प्रयास ।
  • author
    19 जून 2019
    Sundr rachna shubhkamnaye
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    राहुल ध्रुव
    11 अगस्त 2019
    बहुत सुन्दर रचना है