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पतवार !

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राशि नहीं रही, अभी उसके जाने की उम्र नहीं थी लेकिन शायद वह इतनी ही उम्र लेकर आई थी। इसी शहर में पैदा हुई पढ़ी लिखी और ब्याह कर अपने पति के घर गयी लेकिन कुछ ऐसा लेख लिखा था कि वह अंतिम समय फिर अपनी ...

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लेखक के बारे में

रेखा श्रीवास्तव पिता: स्व. श्री छेदालाल श्रीवास्तव माता: स्व. श्रीमती प्रेम कुमारी पति : श्री आदित्य श्रीवास्तव निवास : कानपुर बचपन से ही लिखने का शौक , जो पिता से विरासत में मिला , प्रकाशन भी बाल जगत से आरम्भ मात्र ९ वर्ष की आयु में। सदा भोगा हुआ यथार्थ लेखन का विषय बना। कहानी , लेख , कविता सारी विधाओं में लेखन और स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों की साप्ताहिक पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन। शिक्षा : एम ए (राजनीती शाश्त्र एवं समाज शास्त्र ) , एम एड , डिप्लोमा इन कंप्यूटर साइंस। २४ साल आई आई टी कानपूर में कंप्यूटर साइंस विभाग में मशीन अनुवाद परियोजना में कार्य। सम्प्रति स्वतन्त्र लेखन एवं काउंसलर का कार्य।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Savita Ojha
    19 सितम्बर 2018
    कभी कभी इंसान अहंकार में इतना अंधा हो जाता है कि उसे कुछ समझ नहीं आता और जब आंखें खुलती है तब तक सब कुछ खत्म यथार्थ को दर्शाती कहानी सुंदर अभिव्यक्ति
  • author
    Sandhya Rajput "साँझ"
    12 जून 2018
    कभी कभी अहम कितना कुछ छीन लेता है यह तब पता चलता है जब सब खत्म हो चूका होता है 👌👌👌
  • author
    Priti Tiwari
    20 अगस्त 2018
    bina soche samjhe uthaya kadam dukh ke siva kuch nahi deta
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    Savita Ojha
    19 सितम्बर 2018
    कभी कभी इंसान अहंकार में इतना अंधा हो जाता है कि उसे कुछ समझ नहीं आता और जब आंखें खुलती है तब तक सब कुछ खत्म यथार्थ को दर्शाती कहानी सुंदर अभिव्यक्ति
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    Sandhya Rajput "साँझ"
    12 जून 2018
    कभी कभी अहम कितना कुछ छीन लेता है यह तब पता चलता है जब सब खत्म हो चूका होता है 👌👌👌
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    Priti Tiwari
    20 अगस्त 2018
    bina soche samjhe uthaya kadam dukh ke siva kuch nahi deta