pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

patghar

5
118
नेचर पोएम

पतहर बीत गई सो बात गई अब तो नया सवेरा है संभलो ओर सम्भालों इसको यहीं नया सवेरा है [ यही नया बसेरा है ]] अब न संभले 'तब कब संभले सूरज हर दिन निकलता है चांदनी भी रोशनी बिखेरती है वसंत का आगमन ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    प्रतिभा राय
    20 സെപ്റ്റംബര്‍ 2017
    यंहा पर आया बसन्त और गया बसन्त जैसी बातों को याद किया गया है , और जीवन मे नये रस घोलने की कोशिश की गई है उतंसाहित किया गया है प्रकृति के उतार चढ़ाव को देखते हुये और कहने की कोशिश की गई है। जिस प्रकार से पतझड़, आती है बसन्त आता है और प्रकृति की हर जीव चराचर संचारित होते है वैसे ही मानव जीव उठो यही जीवन जीना है , पतझड़ ऋतुओं से प्रकृति के चराचर यही नियम है स्भलो और संभालो , ,।जी वन की संघ्रष की परिकल्पनाओं को याद करते हु ये इसे कुछ शव्दबद्ध करने की कोशिश की गई है , हिन्दी टाइपिंग की कुछ परेशानी की झलकियाँ साफ़ दीख रही है, , अगर आप पढंे लिखे समझदार है तो समझ ही जायेंगे क्या कहं चूक हुई है हिन्दी मे। इन ग़लतियों को मंाफ करते हुये पढ़े और पढंने के लिये लोगों को उत्साहित करे ,। ओर हिन्दी साहित्य की प्रगति की कामना करें,।
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    प्रतिभा राय
    20 സെപ്റ്റംബര്‍ 2017
    यंहा पर आया बसन्त और गया बसन्त जैसी बातों को याद किया गया है , और जीवन मे नये रस घोलने की कोशिश की गई है उतंसाहित किया गया है प्रकृति के उतार चढ़ाव को देखते हुये और कहने की कोशिश की गई है। जिस प्रकार से पतझड़, आती है बसन्त आता है और प्रकृति की हर जीव चराचर संचारित होते है वैसे ही मानव जीव उठो यही जीवन जीना है , पतझड़ ऋतुओं से प्रकृति के चराचर यही नियम है स्भलो और संभालो , ,।जी वन की संघ्रष की परिकल्पनाओं को याद करते हु ये इसे कुछ शव्दबद्ध करने की कोशिश की गई है , हिन्दी टाइपिंग की कुछ परेशानी की झलकियाँ साफ़ दीख रही है, , अगर आप पढंे लिखे समझदार है तो समझ ही जायेंगे क्या कहं चूक हुई है हिन्दी मे। इन ग़लतियों को मंाफ करते हुये पढ़े और पढंने के लिये लोगों को उत्साहित करे ,। ओर हिन्दी साहित्य की प्रगति की कामना करें,।