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हिन्दी

पाताल लोक

4.9
240

नाटक : पाताल लोक  बैकुंठ धाम में भगवान विष्णु शेषनाग पर विश्राम कर रहे हैं और माता लक्ष्मी उनके निकट बैंठी हैं । इतने में नारद मुनि पदार्पण करते हैं । नारद : नारायण नारायण  भगवान विष्णु जी : कहो ...

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लेखक के बारे में
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श्री हरि

हरि का अंश, शंकर का सेवक हरिशंकर कहलाता हूँ अग्रसेन का वंशज हूँ और "गोयल" गोत्र लगाता हूँ कहने को अधिकारी हूँ पर कवियों सा मन रखता हूँ हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान से बेहद, प्यार मैं दिल से करता हूँ ।। गंगाजल सा निर्मल मन , मैं मुक्त पवन सा बहता हूँ सीधी सच्ची बात मैं कहता , लाग लपेट ना करता हूँ सत्य सनातन परंपरा में आनंद का अनुभव करता हूँ हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान से बेहद, प्यार मैंदिल से करता हूँ

समीक्षा
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    26 മെയ്‌ 2020
    सही कहा अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुछ भी दिखाया जा रहा है। यह सत्य है कि धर्म के नाम पर कई बातें वास्तव में निराधार है पर इसका अर्थ यह नहीं कि कोई कुछ भी दिखा दे और कुछ भी लिख दे। पहले प्राचीन ग्रंथों को पढो फिर कोई कमी निकालो। पर वास्तव में खोट हमारा ही है। मैं एक घटना बताना चाहता हूँ। मेरे एक खास नजदीकी ने मिशनरी विद्यालय में बच्चों की शिक्षा दिलाई। निश्चित ही शिक्षा की गुणवत्ता अच्छी है और समाज सेवा जैसे संस्कार भी आये हैं। पर एक बहुत बङा दुर्गुण उन बच्चों में यह आया है कि हिंदू धर्म की हर बात उन्हें गलत लगती है। और अब उन्हें सही समझा पाना संभव नहीं क्योंकि पकने के बाद घङे सुधारे नहीं जा सकते।
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    26 മെയ്‌ 2020
    आपकी इस व्यंग्य रचना की प्रशंसा मे मेरे शब्द कम पड गये,महोदय।बहुत-बहुत सुन्दर ढंग से आपने इस गलत सोच पर प्रहार किया है।आपकी लेखन शैली को नमन और बहुत-बहुत बधाई भी आदरणीय।
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    26 മെയ്‌ 2020
    सुन्दर हास्यव्यंग, सही है,, अब भगवान हस्तक्षेप नहीं करते मनुष्य खुद ही कर लेता है फैसला 'आॅन द स्पाॅट'...(;
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    26 മെയ്‌ 2020
    सही कहा अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुछ भी दिखाया जा रहा है। यह सत्य है कि धर्म के नाम पर कई बातें वास्तव में निराधार है पर इसका अर्थ यह नहीं कि कोई कुछ भी दिखा दे और कुछ भी लिख दे। पहले प्राचीन ग्रंथों को पढो फिर कोई कमी निकालो। पर वास्तव में खोट हमारा ही है। मैं एक घटना बताना चाहता हूँ। मेरे एक खास नजदीकी ने मिशनरी विद्यालय में बच्चों की शिक्षा दिलाई। निश्चित ही शिक्षा की गुणवत्ता अच्छी है और समाज सेवा जैसे संस्कार भी आये हैं। पर एक बहुत बङा दुर्गुण उन बच्चों में यह आया है कि हिंदू धर्म की हर बात उन्हें गलत लगती है। और अब उन्हें सही समझा पाना संभव नहीं क्योंकि पकने के बाद घङे सुधारे नहीं जा सकते।
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    26 മെയ്‌ 2020
    आपकी इस व्यंग्य रचना की प्रशंसा मे मेरे शब्द कम पड गये,महोदय।बहुत-बहुत सुन्दर ढंग से आपने इस गलत सोच पर प्रहार किया है।आपकी लेखन शैली को नमन और बहुत-बहुत बधाई भी आदरणीय।
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    26 മെയ്‌ 2020
    सुन्दर हास्यव्यंग, सही है,, अब भगवान हस्तक्षेप नहीं करते मनुष्य खुद ही कर लेता है फैसला 'आॅन द स्पाॅट'...(;