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चालीस पार की औरतें

4.8
358

चालीस पार की औरतें, नहीं रहती है कामिनी। पक जाती है, परिस्थितियों के आवें में। फैला लेती है अपने निडर पंख, घर के आँगन पर। हो जाती है लापरवाह, 'इमेज' के झूठे आडम्बर से। जान जाती है खुद को जीवित ...

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लेखक के बारे में

Dr Asharma

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Vijay Kumar Soni
    14 ഫെബ്രുവരി 2019
    वाह !शानदार अभिव्यक्ति
  • author
    06 ഫെബ്രുവരി 2020
    चालीस पार महिलाओं का अत्यंत सहज तरीके और सटीकता के साथ एक सच्चा चित्र और चरित्र उकेरती एक बेहतरीन कविता!👌👌 वाह वाह वाह!!👏👏👏
  • author
    Renu
    14 ഫെബ്രുവരി 2019
    बहुत ही शानदार विश्लेष्ण चालीस पार की औरतों के विषय में और सटीक भी | वैरी गुड अर्चना जी | सस्नेह शुभकामनायें स्वीकार हों |
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    Vijay Kumar Soni
    14 ഫെബ്രുവരി 2019
    वाह !शानदार अभिव्यक्ति
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    06 ഫെബ്രുവരി 2020
    चालीस पार महिलाओं का अत्यंत सहज तरीके और सटीकता के साथ एक सच्चा चित्र और चरित्र उकेरती एक बेहतरीन कविता!👌👌 वाह वाह वाह!!👏👏👏
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    Renu
    14 ഫെബ്രുവരി 2019
    बहुत ही शानदार विश्लेष्ण चालीस पार की औरतों के विषय में और सटीक भी | वैरी गुड अर्चना जी | सस्नेह शुभकामनायें स्वीकार हों |