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पाप, तर्क और प्रायश्चित

4.6
21937

‘‘सुनो, तुम मीनू को जानते हो?...वही जो तुम्हारे भैया के पास पढ़ती थी।’’ ‘‘ न... नहीं तो।’’ ‘‘अरे काफी समय से पढ़ रही थी उनसे और तुम्हें तो अच्छी तरह जानती है। शायद देखा हो तुमने कभी। पतली-दुबली सी ...

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लेखक के बारे में

शिक्षा-दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में पीएच.डी । जन्म-28 अप्रैल 1971   प्रकाशित किताबें    ‘नुक्कड़ नाटक: रचना और प्रस्तुति’ राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से प्रकाशित। वाणी प्रकाशन से  नुक्कड़ नाटक-संग्रह ‘जनता के बीच जनता की बात’ । एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा ‘तारा की अलवर यात्रा’ । सामाजिक सरोकारों  को उजागर करती पुस्तक ‘आईने के सामने’ स्वराज प्रकाशन से प्रकाशित।   कहानी-लेखन   कथादेश, वागर्थ, परिकथा, पाखी, जनसत्ता,  वर्तमान साहित्य ,बनासजन, पक्षधर, जनसत्ता साहित्य वार्षिकी, सम्प्रेषण,हिंदी चेतना, अनुक्षण आदि पत्रिकाओं में कहानियां प्रकाशित।    पुरस्कार - सूचना और प्रकाशन विभाग, भारत सरकार की ओर से पुस्तक ‘तारा की अलवर यात्रा ’ को वर्ष 2008 का भारतेंदु हरिशचंद्र पुरस्कार।   जनसंचार माध्यमों में भागीदारी जनसत्ता, राष्ट्रीय सहारा, नयी दुनिया जैसे राष्ट्रीय दैनिक समाचार-पत्रों और विभिन्न पत्रिकाओं में नियमित लेखन। संचार माध्यमों से बरसों पुराने जुड़ाव के तहत आकाशवाणी और दूरदर्शन के अनेक कार्यक्रमों  के लिए लेखन और भागीदारी।   सम्प्रति: दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज के हिंदी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में  कार्यरत।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Sangya Upadhyaya
    18 ऑगस्ट 2015
    5/5
  • author
    r kumar
    19 ऑगस्ट 2015
    आधुनिक भारतीय समाज में धर्मसत्ता की अमानवीयता को अभिव्यक्त करती कहानी बधाई प्रज्ञा
  • author
    केवल राम
    20 ऑगस्ट 2015
    प्रज्ञा रोहिणी द्वारा रचित 'पाप, तर्क और प्रायश्चित' कहानी नए भाव बोध को पाठकों के समक्ष लाती है. इस कहानी के कई कोण है. एक तरफ धर्म और आस्था के प्रश्न हैं तो दूसरी और एक लड़की के जीवन की परिस्थितियाँ. कॉलेज में मीनू का व्यवहार उसके बचपन और उसकी सोच को दर्शाता है तो उसके परिवार की परिस्थितियाँ उसे परम्परागत जीवन जीने के लिए मजबूर करती हैं.  इमरान के साथ मीनू का प्रेम प्रसंग सिर्फ जाति का ही मामला नहीं है, बल्कि यह धर्म का मामला भी है. प्रेम प्रसंग के माध्यम से वर्तमान मनुष्य की सोच की परतें अच्छे से खुली हैं. मीनू का साध्वी बन जाना, और मीनू का सन्यास की दीक्षा ग्रहण कर लेना एक और पहलू है. जिसे वह प्रायश्चित और जीवन गुजरने के लिए आवश्यक समझती हैं. कहानी के कथानक का फलक विस्तृत है. कहानी मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से बेहतर कही जा सकती है, क्योँकि धर्म, आस्था, विश्वास, जाति और धर्म सब मनुष्य के मन की उपज हैं. इन सबका जिक्र और इनकी विसंगतियां इस कहानी में प्रासंगिक तरीके से उभरी हैं. भाषा और शैली की दृष्टि से भी कहानी उच्च कोटि की है.                 
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    Sangya Upadhyaya
    18 ऑगस्ट 2015
    5/5
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    r kumar
    19 ऑगस्ट 2015
    आधुनिक भारतीय समाज में धर्मसत्ता की अमानवीयता को अभिव्यक्त करती कहानी बधाई प्रज्ञा
  • author
    केवल राम
    20 ऑगस्ट 2015
    प्रज्ञा रोहिणी द्वारा रचित 'पाप, तर्क और प्रायश्चित' कहानी नए भाव बोध को पाठकों के समक्ष लाती है. इस कहानी के कई कोण है. एक तरफ धर्म और आस्था के प्रश्न हैं तो दूसरी और एक लड़की के जीवन की परिस्थितियाँ. कॉलेज में मीनू का व्यवहार उसके बचपन और उसकी सोच को दर्शाता है तो उसके परिवार की परिस्थितियाँ उसे परम्परागत जीवन जीने के लिए मजबूर करती हैं.  इमरान के साथ मीनू का प्रेम प्रसंग सिर्फ जाति का ही मामला नहीं है, बल्कि यह धर्म का मामला भी है. प्रेम प्रसंग के माध्यम से वर्तमान मनुष्य की सोच की परतें अच्छे से खुली हैं. मीनू का साध्वी बन जाना, और मीनू का सन्यास की दीक्षा ग्रहण कर लेना एक और पहलू है. जिसे वह प्रायश्चित और जीवन गुजरने के लिए आवश्यक समझती हैं. कहानी के कथानक का फलक विस्तृत है. कहानी मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से बेहतर कही जा सकती है, क्योँकि धर्म, आस्था, विश्वास, जाति और धर्म सब मनुष्य के मन की उपज हैं. इन सबका जिक्र और इनकी विसंगतियां इस कहानी में प्रासंगिक तरीके से उभरी हैं. भाषा और शैली की दृष्टि से भी कहानी उच्च कोटि की है.