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पनघट

4.5
340

दूर गांव के पनघट से वो गागर भरकर लाती थी छन-छन करती झांझर उसकी नगमे कई सुनाती थी अमृत जल से भरकर अपना मंगल कलश उठाती थी छलक-छलक शीतल बूंदे पगडंडी हरी कर जाती थी दूर गांव के पनघट से वो गागर भरकर ...

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लेखक के बारे में
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Nikki Rajpurohit
समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Narendra Mehar "Naren"
    19 अक्टूबर 2021
    बहुत ही अच्छा लिखा है आपने कोशिश कीजिए आगे भी लिखने की हमे गांव बहुत अच्छे लगते है
  • author
    Rajeev Dutta "घुमंतू"
    23 फ़रवरी 2021
    aap acha likhti hai.... kripya aaur likhe
  • author
    18 जून 2017
    achhi h ji likhte raho
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  • author
    Narendra Mehar "Naren"
    19 अक्टूबर 2021
    बहुत ही अच्छा लिखा है आपने कोशिश कीजिए आगे भी लिखने की हमे गांव बहुत अच्छे लगते है
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    Rajeev Dutta "घुमंतू"
    23 फ़रवरी 2021
    aap acha likhti hai.... kripya aaur likhe
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    18 जून 2017
    achhi h ji likhte raho