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पनघट

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4.5

दूर गांव के पनघट से वो गागर भरकर लाती थी छन-छन करती झांझर उसकी नगमे कई सुनाती थी अमृत जल से भरकर अपना मंगल कलश उठाती थी छलक-छलक शीतल बूंदे पगडंडी हरी कर जाती थी दूर गांव के पनघट से वो गागर भरकर ...