दूर गांव के पनघट से वो गागर भरकर लाती थी छन-छन करती झांझर उसकी नगमे कई सुनाती थी अमृत जल से भरकर अपना मंगल कलश उठाती थी छलक-छलक शीतल बूंदे पगडंडी हरी कर जाती थी दूर गांव के पनघट से वो गागर भरकर ...
दूर गांव के पनघट से वो गागर भरकर लाती थी छन-छन करती झांझर उसकी नगमे कई सुनाती थी अमृत जल से भरकर अपना मंगल कलश उठाती थी छलक-छलक शीतल बूंदे पगडंडी हरी कर जाती थी दूर गांव के पनघट से वो गागर भरकर ...