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पांडेय जी और साहित्य महोत्सव

3.1
1411

चुनांचे आए दिन पांडेय जी के जीवन में कुछ न कुछ घटता रहता हैं।कभी कुछ खट्टा तो कभी कुछ मीठा। पांडेय जी अपने इलाके के बड़े जाने-माने लेखक थे।खूब पैरोडी करते।लोग वाह-वाह भी करते।अपने हुनर का लोहा मनवाने ...

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समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    🪔
    31 ऑक्टोबर 2020
    वाह!👏👏👏👏👏👏
  • author
    gulshan shukla
    24 मे 2017
    अन्तिम प्रष्ठ के अलावा हास्य कहीं नहीं मिला
  • author
    17 एप्रिल 2017
    बढ़िया व्यंग्य। कवि लेखकों की कमजोर नस खूब पकड़ी।
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    🪔
    31 ऑक्टोबर 2020
    वाह!👏👏👏👏👏👏
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    gulshan shukla
    24 मे 2017
    अन्तिम प्रष्ठ के अलावा हास्य कहीं नहीं मिला
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    17 एप्रिल 2017
    बढ़िया व्यंग्य। कवि लेखकों की कमजोर नस खूब पकड़ी।