pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

परदेसिया गांव का

4.1
11247

मुझे नही जाना माँ , मुझे नही जाना दीदी ,  मुझे नही जाना पापा , मुझे नही जाना भैया , मुझे नही जाना नही जाना । यह बात रणधीर बोल रहा था , पर इसका सुनने वाला कोई नही था , सब के सब उसे भेजने में लगे ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में

अभी लिखना सिख रहे हैं. साथ दीजिएगा

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Pooja Riyar
    08 ജൂണ്‍ 2020
    कहानी अच्छी है लेकिन एक खालीपन है
  • author
    BALWANT SINGH
    06 സെപ്റ്റംബര്‍ 2020
    अति सुंदर वर्णन गाँव को छोड़कर नौकरी पर जाने का । किन्तु कई बार ऐसा होता कि हम इस बार जितने लोगो को छोड़कर जाते हैं वापस आने पर सभी नही मिलते । अकेले होने के कारण दुःखी न हो ये बात भी छिपा ली जाती थी जो वाकई बहुत दुखद होती हैं।
  • author
    16 ജൂണ്‍ 2018
    सच्चाई । परिवार का प्यार ही कुछ ऐसा होता है कोई किसी से बिछुड़ना नही चाहता लेकिन पेट की खातिर। वाक़ई बहुत ही उम्दा रचना ।
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Pooja Riyar
    08 ജൂണ്‍ 2020
    कहानी अच्छी है लेकिन एक खालीपन है
  • author
    BALWANT SINGH
    06 സെപ്റ്റംബര്‍ 2020
    अति सुंदर वर्णन गाँव को छोड़कर नौकरी पर जाने का । किन्तु कई बार ऐसा होता कि हम इस बार जितने लोगो को छोड़कर जाते हैं वापस आने पर सभी नही मिलते । अकेले होने के कारण दुःखी न हो ये बात भी छिपा ली जाती थी जो वाकई बहुत दुखद होती हैं।
  • author
    16 ജൂണ്‍ 2018
    सच्चाई । परिवार का प्यार ही कुछ ऐसा होता है कोई किसी से बिछुड़ना नही चाहता लेकिन पेट की खातिर। वाक़ई बहुत ही उम्दा रचना ।