इन्सान और मशीन दोनों उम्र बीत जाने पर अकेले पड़ जाने को अभिशप्त हो जाते हैं! अकेले पड़ जाने और पुराने हो जाने का यह अहसास दोनों ही को कितना अकेला कर देता है! कितना डराता है और अजीब है न यह ख्याल कि ...
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कुल आठ किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। दो जल्दी ही आने वाली हैं। जिनमें दो कविता संग्रह, पाँच कहानी संग्रह, तीन उपन्यास हैं। बहुत सारे पुरस्कारों से सम्मानित, साहित्य के क्षेत्र में करीब पंद्रह वर्ष से खूब सक्रिय नाम।
सारांश
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कुल आठ किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। दो जल्दी ही आने वाली हैं। जिनमें दो कविता संग्रह, पाँच कहानी संग्रह, तीन उपन्यास हैं। बहुत सारे पुरस्कारों से सम्मानित, साहित्य के क्षेत्र में करीब पंद्रह वर्ष से खूब सक्रिय नाम।
बहुत सही सामयिक लिखा खासकर हम जैसे वृद्धों के लिये ।क्योंकि हम क्षण क्षण गलते सस्ते चुपके जाते हैं ।वक्त बीतते वक्त नही लगता ।पहले हमारे हजारों कामों के बीच भी बुजुर्गों की शान अलग ही थी और हम उनके लिये कैसे भी समय निकालते थे क्यो कि वे हमारे लिये शर्म नही शान थे और हम
आने वाली पीढ़ी के लिए शर्म है तो आउट डेटेड सी हैं ।हाँ कुछ पैसा हो तो सह पर नहो तो? बहुत अच्छा लिखा ।
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बहुत सही सामयिक लिखा खासकर हम जैसे वृद्धों के लिये ।क्योंकि हम क्षण क्षण गलते सस्ते चुपके जाते हैं ।वक्त बीतते वक्त नही लगता ।पहले हमारे हजारों कामों के बीच भी बुजुर्गों की शान अलग ही थी और हम उनके लिये कैसे भी समय निकालते थे क्यो कि वे हमारे लिये शर्म नही शान थे और हम
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