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ओ! सागर!!!

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ओ! सागर! तुम इतने खारे क्यों हो?कहाँ से लाते हो इतना खारापन? उच्च पर्वतों से निकली,अठखेलियाँ-बल खातीं, इठलातीं मीठी नदियाँ , कभी झरनों सी झरझराती, कभी झीलों सी झिलमिलातीं मीठी नदियाँ , बाँधों से ...