ओ! सागर! तुम इतने खारे क्यों हो?कहाँ से लाते हो इतना खारापन? उच्च पर्वतों से निकली,अठखेलियाँ-बल खातीं, इठलातीं मीठी नदियाँ , कभी झरनों सी झरझराती, कभी झीलों सी झिलमिलातीं मीठी नदियाँ , बाँधों से ...
ओ! सागर! तुम इतने खारे क्यों हो?कहाँ से लाते हो इतना खारापन? उच्च पर्वतों से निकली,अठखेलियाँ-बल खातीं, इठलातीं मीठी नदियाँ , कभी झरनों सी झरझराती, कभी झीलों सी झिलमिलातीं मीठी नदियाँ , बाँधों से ...